आह!मैं भारत शत्रु का कर रहा आह्वान ।
मुझसे वैर विद्रोह का तुझको है अनुमान॥
भाग्य विपर्यय कर यूं, हुआ विधाता वाम l
विभाजन ने मुझको फिर, दिया दुसह परिणाम ll
छल कपट से छिन कर लिये देस पर देस ।
तेरा उद्देश्य शेष को करना है अवशेष ॥
यह दुर्ग ध्वजा यह दल यह सैन्य यह कोष ।
यह सीमा यह मैत्रि बल मेरा ही परितोष ॥
प्रनय प्रीति का राग यह जीवन का संगीत |
युगों से है भारत के देस धर्म की रीत ॥
यह परिजन का कौटुम्ब यह आचार विचार ।
सिखा मुझसे तुने कि यह होता है परिवार ॥
गाँव गली गढ़ पुर नगर कहते इसको देस ।
लिया जान ज्ञान यह सुन भारत के उपदेस ॥
खाता जिस आवाल में, करता उसमें छेद ।
हुपे नहीं रहेंगे अब, जग में तेरे भेद ॥
आवाल = थाला
तेरे पथ प्रदर्शक के धर्म भवन की नीँव।
बता कहां है जगत को सुन ए गुहा के जीव ॥
गुफा= खैबर दर्रा
यह पावन भूमि मेरे,जन्में जहाँ अधीस ।
बता किसकी ड्योढ़ि पे, झुकता तेरा सीस ।।
यह हिम गिरि की श्रंखला,इसका शेखर शृंग l
है उसी महाकाल का, जिसके शिश है गंग ll
जब तक थिर स्थिर मेरे, धैर्य का है धुर्य ।
तब तक उदय है तेरे साम्राज्य का सूर्य ॥
धुर्य= धूरी
सीमा पर निरंतर हा तेरा ये प्रतिकार l
शांति नहीं तुझको है संग्राम स्वीकार ll
शील संयम नियम वसन भूषण मर्यादाचारि l
पराक्रम पारण मेरा सुन ए अतिक्रमणकारि ॥
भीरू पन प्रकट कर तू, करता भीतर घात l
मेरे बल पौरुष का, तुझे नहीं संज्ञात ll
नित प्रत्यक्ष दर्श कर तू , यह निष्कंटक जीत l
मेरी निडर अजेय से,रहा सदा भयभीत ll
देख निकट विनाश काल,होती मति विपरीत ।
होगा तेरे रक्त से, यह त्रिशूल रंजीत ll