Tuesday, July 29, 2025

----- || राग-रंग 65 || -----,

घिर घिर आवैं कारे बादल गागर भरी भरी लावैं l 

कंज कलस कर धारे बादल लै मंगल मौलि बँधावै ll 

स्वस्ति मंत्र उचारें बादल स्वस्तिक पूरत सुहावैं l 

घनकत घन घनकारे बादल ढप डमरू झाँझ बजावै ll 


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। 

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥" 


शंकर शंभु पुकारे बादल मंदिर मंदिर पर छावै।

कनक कँगूर निहारे बादल कंकनि खनखन खनकावैं ॥

अमरत के ले धारे बादल गिरिवर के सीस चढ़ावै। 

दिखैँ रतनारे बादल जगती ज्योति जगरावै ॥


केसरिया पट धारे बादल अवधुत स्वांग रचावैं ।

रैनी साँझ सकारे बादल जहँ तहँ दृग सौँ दरसावै॥ 

घर घर घेर दुआरे बादल हरि हर की कीरति गावै ।

फिर फिर नगर बिहारे बादल अमरत रस झलकावै ॥


निरंजन निरंकारे बादल अग जग की अलख जगावैं । 

डगर डगर पग धारें बादल डग भर आतुर चलि जावैं ॥ 

मधुरिम बैनत हाँ रे बादल जब जो को पूछ बुझावै । 

अजहुँ जइहों कहाँ रे बादल जनक पुर बोल बतलावैं ॥ 


जुड़ जुड़ तहाँ जाएँ चले बिनयवनत नभ छाएँ l 

जहाँ हम सारे बादल सुख संपद बरसाएँ ॥ 

जागृत ज्योत= अखंड ज्योत


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