घिर घिर आवैं कारे बादल गागर भरी भरी लावैं l
कंज कलस कर धारे बादल लै मंगल मौलि बँधावै ll
स्वस्ति मंत्र उचारें बादल स्वस्तिक पूरत सुहावैं l
घनकत घन घनकारे बादल ढप डमरू झाँझ बजावै ll
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥"
शंकर शंभु पुकारे बादल मंदिर मंदिर पर छावै।
कनक कँगूर निहारे बादल कंकनि खनखन खनकावैं ॥
अमरत के ले धारे बादल गिरिवर के सीस चढ़ावै।
दिखैँ रतनारे बादल जगती ज्योति जगरावै ॥
केसरिया पट धारे बादल अवधुत स्वांग रचावैं ।
रैनी साँझ सकारे बादल जहँ तहँ दृग सौँ दरसावै॥
घर घर घेर दुआरे बादल हरि हर की कीरति गावै ।
फिर फिर नगर बिहारे बादल अमरत रस झलकावै ॥
निरंजन निरंकारे बादल अग जग की अलख जगावैं ।
डगर डगर पग धारें बादल डग भर आतुर चलि जावैं ॥
मधुरिम बैनत हाँ रे बादल जब जो को पूछ बुझावै ।
अजहुँ जइहों कहाँ रे बादल जनक पुर बोल बतलावैं ॥
जुड़ जुड़ तहाँ जाएँ चले बिनयवनत नभ छाएँ l
जहाँ हम सारे बादल सुख संपद बरसाएँ ॥
जागृत ज्योत= अखंड ज्योत
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