Wednesday, July 2, 2025

----- || राग-रंग 54 || -----,

 सदरे जग से सुन्दर ए मेरे भारत देस। 

तेरे सम्मुख सिस सहित नत नत नैन निमेष ॥१||  


हिम गिरिवर मौली मुकुट तेरा सिस श्रंगार । 

सिंदूरि सी सूर्यकिरन देय तिलक लिलार॥२||  

लिलार=मस्तक 


हिम वान पर मानस सर शशि शेखर का शृंग। 

ऊँकार कर गुंज रहे, भँवर भ्रमरते भृंग ||३||   

हिम वान=कैलास ,हिमालय... मानससर=मानसरोवर शशिशेखर=शिवजी,श्रंग =जटा चोटीभ्रमर भ्रमरते भृंग= परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करते भँवरे स्वरूप भक्त, मानस सर =मान सरोवर 

कलित कंढ को कर रही दे जय माल तरंग। 

हृदय तेरे उतर रही कल कल बहती गंग ।l४|| 

कलित=विभूषित 


शस्य शील ए वसुंधरा तुझको नमस्कार। 

तीन सिंधु यह कह रहे तेरे चरण पखार॥५||  


गाँव गाँव सब पुर नगर तेरे तीरथ धाम। 

घर घर मंदिर रूप है जन जन सीता राम ॥६||  


राम का आदर्श चरित्र,यह गीता का उपदेश l 

अखिल विश्व को दे रहा सद पथ का संदेश ll७|| 


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