Saturday, July 19, 2025

----- || राग-रंग 61 || -----,

 || इति जानकी: अष्टकम् || 


भरी सभा में जौं रघुनन्दन शिव के धनुष को तोड़ निबारे   | 

दइ श्रवन धूनि पुनि प्रचंड खन खंड महि दो दंड में डारे  || 

कब चढ़ाऐं खैंचेउ कब संभु धनु प्रभो कब भंज निहारे | 

बीच भू राजाधिराज समाज काज ए लाख न देखनपारे || 

..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


चाकत चारु चौंक पुराए पुलकित प्रेम ने बाँधे बँदनबारे | 

नेह भरे प्रीति के जगमग दीप मनोहर जग को उजियारे || 

चन्दन चौंकी डसाए ह्रदय में कंकन किरन के फँदन डारे | 

कुंच कुसुम को पंथ बिछाए अलकन ने दिए पलकन के पँवारे || 


..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


कोमल कमल चरन बढ़ाए ता परु रघुराज कुँवर जी पधारे  |  

दरसे ज्योँ पिय प्रीतम सिय को देहरि के देवल नैन के दुआरे || 

आन दुआरु  सियँ लइँ बसाए पल में पलकन्हि ने पट डारे | 

मुँदरिआ के मनि मुकुर छबि  निहार निहार निहार ना हारे || 

..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


लाजत बाल मरालि गति चलत सिय जलज जय माल कर धारे | 

चली संग सखि गन सुरभित सौम सुमन के भार सँभारे || 

भइँ सनमुख भगवन ठाढ़ रहे मौलि मुकुट धर सिस को सारे | 

ओज सरोज मुख तेज तिलक कोटिक मनोज लजावनहारे || 

.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


निरख सकुचत जगजननी जौं लछिमन बाढ़ि के चरन जुहारे | 

झुकै रघु नाथ गहेउँ ताहि निज भुज सेखर दंड पसारे || 

देइ सियाँ जय माल धरीं करिं कंठ कलित उर मेल उतारे | 

परसि गह पानि अरुनिम प्रभु पद पदुम परागन लेइ सिर धारे ||   

.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


लालि चुनर के चँदा तारे प्रभु की मङ्गल आरति उतारएँ | 

कहँ बधाईं सँग सखीं भरि अँजुरि कौसुम बारि सौं बौछारएँ || 

राजा जनक जी लागें निछावरि फेरत वारिहिं बारहिबारएँ  | 

बाजैं दुँदुभीं गावहिं पुरजन सुरगन सङ्गति मंत्र उँचारएँ  || 

.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे || 


 सिय राम बिबाहु के जूँ जगे नैन अभिलाष | 

 लगन पत्रिका दूत लिये पहुंचे दसरथ पास ||| 

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