|| इति जानकी: अष्टकम् ||
दइ श्रवन धूनि पुनि प्रचंड खन खंड महि दो दंड में डारे ||
कब चढ़ाऐं खैंचेउ कब संभु धनु प्रभो कब भंज निहारे |
बीच भू राजाधिराज समाज काज ए लाख न देखनपारे ||
..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
चाकत चारु चौंक पुराए पुलकित प्रेम ने बाँधे बँदनबारे |
नेह भरे प्रीति के जगमग दीप मनोहर जग को उजियारे ||
चन्दन चौंकी डसाए ह्रदय में कंकन किरन के फँदन डारे |
कुंच कुसुम को पंथ बिछाए अलकन ने दिए पलकन के पँवारे ||
..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
कोमल कमल चरन बढ़ाए ता परु रघुराज कुँवर जी पधारे |
दरसे ज्योँ पिय प्रीतम सिय को देहरि के देवल नैन के दुआरे ||
आन दुआरु सियँ लइँ बसाए पल में पलकन्हि ने पट डारे |
मुँदरिआ के मनि मुकुर छबि निहार निहार निहार ना हारे ||
..... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
लाजत बाल मरालि गति चलत सिय जलज जय माल कर धारे |
चली संग सखि गन सुरभित सौम सुमन के भार सँभारे ||
भइँ सनमुख भगवन ठाढ़ रहे मौलि मुकुट धर सिस को सारे |
ओज सरोज मुख तेज तिलक कोटिक मनोज लजावनहारे ||
.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
निरख सकुचत जगजननी जौं लछिमन बाढ़ि के चरन जुहारे |
झुकै रघु नाथ गहेउँ ताहि निज भुज सेखर दंड पसारे ||
देइ सियाँ जय माल धरीं करिं कंठ कलित उर मेल उतारे |
परसि गह पानि अरुनिम प्रभु पद पदुम परागन लेइ सिर धारे ||
.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
लालि चुनर के चँदा तारे प्रभु की मङ्गल आरति उतारएँ |
कहँ बधाईं सँग सखीं भरि अँजुरि कौसुम बारि सौं बौछारएँ ||
राजा जनक जी लागें निछावरि फेरत वारिहिं बारहिबारएँ |
बाजैं दुँदुभीं गावहिं पुरजन सुरगन सङ्गति मंत्र उँचारएँ ||
.... जय जय करत जगत जगपति राजा राम चंद्र की जयकारे ||
सिय राम बिबाहु के जूँ जगे नैन अभिलाष |
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