Monday, September 23, 2019

----- || राग-रंग 30 | -----

भासत भानु भयउ भिनसारा | बिरति रैनि मेटे अँधियारा || 
आँगन आँगन भरे अँजोरा | भोरु भई बोलै तमचोर || 
भानु के भासवंत होते ही प्रभात हुवा रात्रि व्यतीत हुई और अन्धकार विनष्ट हो गया | आँगन प्रकाश से परिपूर्ण हो गए अरुणचूड़ बोल उठे 'भोर हो गई' | '

जागत ज्योति अगजग जागै | जागिहि पुरजन सयन त्याग || 
कासत कंचन कलस कँगूरे | बन बन पुलकित पुहुप प्रफूरे || 
ज्योति के प्रज्वलित रहते तक सारा संसार जागृत हो गया |  पुरजन भी निद्रा त्याग कर जागृत हो गए | (सूर्य की किरणे के स्पर्श करने पर ) मंदिरों के स्वर्णमयी कंगूरे दमकने लगे, वन वन पुलकित होकर पुष्प खिल उठे  | 

जोए पानि जुग सीस नवाए | पुष्कर पुष्कर पदम् उपजाए || 
करत धुनि मुख संख अपूरे | झनकै झाँझरि संग नुपूरे || 
सरोवरों में युगल हस्त को जोड़े शीश झुकाए पद्म निकल आए | मुख में आपूरित शंख ध्वनि करने लगे उनकी संगती करते हुवे नूपुरों के साथ झाँझरी भी झनक उठी | 

प्रमुदित  सबु जन करि अस्नाना | चले देबल पहिर बर बाना ||
गहे थाल जल मंगल मौली | संगत अच्छत सेंदुर रोली || 
प्रमुदित पुरजन स्नान आदि क्रिया से निवृत होकर सुन्दर वस्त्र धारण किए मंदिर की ओर चल पड़े | वह थालों में जल, मंगल मौली के साथ अक्षत सिंदूर रोली आदि पूजन सामग्री ग्रहण किए हुवे थे | 

परस घंटिका प्रबिसि द्वारा | जय जय जय जय सिव ओंकारा || 
भूसुर मधुरिम आरती गाएँ | बाजत मँजीरी ढोलु सुहाए || 
घण्टिका का स्पर्श करते हुवे उन्होंने वह मंदिर में प्रविष्ट हुवे जय जय जय जय शिव ओंकारा, ब्राह्मण देव यह आरती गान कर रहे थे बजते मंजिरे व् ढोल अत्यंत सुहावने प्रतीत हो रहे थे | 

हे गंगाधरं नटेश्वरं हे शङ्करं महदेव हे | 
हे भस्मशायी शशि शेखरं निष्कारणोंदयेव हे || 
हे गणेश शेष शारदा सिंधु शयन जगद्पति लक्ष्मीश हे | 
करै बिनति देहु सुभाशीश कर धारौ हमरे नत शीश हे || 
हे गंगा को धारण करने वाले, नटों  के ईश्वर, हे शंकर, हे महादेव, हे भस्म में शयन करने वाले, भाल में चन्द्रमा को धारण करने वाले आप  बिना कारण ही उदयित होते हैं | हे गणेश शेष शारदा हे सिंधु में शयन करने वाले जगदपति लक्ष्मीश हम आप से विनती करते हैं आप हमारे नत शीश पर हस्त धार्य कर हमें शुभाशीश दें | 

बरधेउ पापि अजहुँ अति, भयो पाप कर भार | 
कहै गौरूप धरनि पुनि लिजै नाथ औतार || 
गौ का रूप धारण कर धरनी कहती है पापियों का वर्धन होने के कारण अब तो पाप का भार अत्यधिक हो चला है | हे नाथ ( मुझे पापमुक्त करने हेतु )आप पुनश्च अवतार लें | 

Sunday, September 1, 2019

----- || राग-रंग 29| -----,

----- || राग-दरबार ||-----
ऐ घटाओं तुम्हेँ और निखरना होगा,
बनके काजल मेरी आँखों में सँवरना होगा,
ऐ संदर मेरी हृदय की धरती से उठो.,
बूँद बनकर तुम्हेँ पलकों से उतरना होगा..,

जिसके होठों की सरगम हूँ शहनाई हूँ..,
कहे रो रो के वो बाबुल अब मैं पराई हूँ.....