खेट खेड़ में बहति नहि अजहुँ बायु उनचास |
साजन मोरे देस सों बिछड़ गयो मधुमास || १ ||
बिरवा सँगत डारि बिछड़ी बिछड़े सुमन सुगंध |
संगी संगिनि पलक में बिहुर रहे गठ बंध || २ ||
जलधर जल धारे नहीं नदियन में नहि नीर |
मन में नाही धीर रे नैनन में नहि पीर || ३ ||
बस्ती बस्ती बासिते बसे बिनहि अब गेह |
पुरजन परिजन बीच सो रहे नहीं अस्नेह || ४ ||
साजन आस पड़ोस में दरस परायो बास |
पराधीन होत रहा ए देस दास का दास ||५ ||
अधिबासत बसबासते भीते भीतहि भीत |
तिनकी सिखाई चालनि बिसरि आपनी रीत || ६ ||
सरोबर सरोज बिनु भए मानस बिनु कल हंस |
कुलीन मलिने होत गए बिछुड़े निज कुल बंस || ७ |
जल मलिना बायु मलिनी मालिने ताल नद कूप |
निरबंसि सों बिगड़ गयो भगवन का सरूप || ८ ||
साजन मोरे देस जहँ बहति दूध की धार |
जनमानस अजहुँ तहँ रे खावैं जंतुहु मार || ९ ||
उपज अनाज मीन भई ताल भयउ अब खेत |
किरसक भया कसाइया उर्बरता गहि रेत || १० ||
भाषा भूषा बिगड़ गइ बिगड़ा खान रु पान |
दोनहु अजहूँ एकै भए मानस कहा स्वान || ११ ||
नहीं कतहुँ अमराइयाँ नहीं पीपल करि छाँए |
बालक मन फल फूल को दरसनहू तरसाए || १२ ||
पोथी पत्तर माहि अब पढ़िते एहि सब कोए |
अमराई बौराए के कोयरि-कोयरि होए || १३ ||
भूयसि भव उपभोगते जन जन भए नरनाह |
भौनत भू थकि डोलती गहे तासु दुर्बाह || १४ ||
नीची करनि करनहार बैस ऊँच अस थान |
हँसा नीच बैसाए अब कागा देय ग्यान || १५ ||
न त सीतल चाँदनी अब नही सुनहरी धूप |
साजन मोरे देस का बिगड़ गयो रँग रूप || १६ ||
साजन मोरे देस सों बिछड़ गयो मधुमास || १ ||
बिरवा सँगत डारि बिछड़ी बिछड़े सुमन सुगंध |
संगी संगिनि पलक में बिहुर रहे गठ बंध || २ ||
जलधर जल धारे नहीं नदियन में नहि नीर |
मन में नाही धीर रे नैनन में नहि पीर || ३ ||
बस्ती बस्ती बासिते बसे बिनहि अब गेह |
पुरजन परिजन बीच सो रहे नहीं अस्नेह || ४ ||
साजन आस पड़ोस में दरस परायो बास |
पराधीन होत रहा ए देस दास का दास ||५ ||
अधिबासत बसबासते भीते भीतहि भीत |
तिनकी सिखाई चालनि बिसरि आपनी रीत || ६ ||
सरोबर सरोज बिनु भए मानस बिनु कल हंस |
कुलीन मलिने होत गए बिछुड़े निज कुल बंस || ७ |
जल मलिना बायु मलिनी मालिने ताल नद कूप |
निरबंसि सों बिगड़ गयो भगवन का सरूप || ८ ||
साजन मोरे देस जहँ बहति दूध की धार |
जनमानस अजहुँ तहँ रे खावैं जंतुहु मार || ९ ||
उपज अनाज मीन भई ताल भयउ अब खेत |
किरसक भया कसाइया उर्बरता गहि रेत || १० ||
भाषा भूषा बिगड़ गइ बिगड़ा खान रु पान |
दोनहु अजहूँ एकै भए मानस कहा स्वान || ११ ||
नहीं कतहुँ अमराइयाँ नहीं पीपल करि छाँए |
बालक मन फल फूल को दरसनहू तरसाए || १२ ||
पोथी पत्तर माहि अब पढ़िते एहि सब कोए |
अमराई बौराए के कोयरि-कोयरि होए || १३ ||
भूयसि भव उपभोगते जन जन भए नरनाह |
भौनत भू थकि डोलती गहे तासु दुर्बाह || १४ ||
नीची करनि करनहार बैस ऊँच अस थान |
हँसा नीच बैसाए अब कागा देय ग्यान || १५ ||
न त सीतल चाँदनी अब नही सुनहरी धूप |
साजन मोरे देस का बिगड़ गयो रँग रूप || १६ ||