Sunday, October 6, 2019

----- || राग-रंग 32 || -----,

डगर डगर सबु गृह नगर, लघुत त कतहुँ बिसाल | 
मंगल रचना सों रचे,परम बिचित्र पंडाल || १ || 
नगर के सभी मार्गों एवं गृहों में कहीं लघु तो कहीं विशाल रूप में मंगल रचनाकृति से परम विचित्र पंडाल रचे गए हैं| 

ध्वज पताक तोरन सों गइँ सब गलीं सँवारि | 
बंदनबारि बँधाइ के दमकत दहरि दुआरि || २ || 
धवज पताका तथा तोरणादि सामग्रियों से सभी गालियां सुसज्जित हैं बन्दनवाल विबन्धित कर देहली और दीवारी दमक रहीं हैं | 

बर बर भूषन बसन सँग साज सुमंगल साज | 
जगन मई जग मोहनी भीतर रहहिं बिराज || ३ || 
उत्तम वस्त्राभूषाणों व् सुमांगलिक श्रृंगार से श्रृंगारित होकर जगन्मई महामाया उनके अंतस में विराजित हैं | 

बिप्रबृंद अस्तुति करैं गहे आरती थाल | 
ढोलु मँजीरु के संगत करत धुनी करताल || ४ || 
ब्राह्मण देव के समूह आरती थाल ग्रहण किए उनकी स्तुति करने में संलग्न हैं | ढोल मंजीरे की संगती करते करतल से मधुर ध्वनि उत्पन्न हो रही है | 

कलित केस मौली मुकुट तिलक लषन दए भाल | 
कानन कुण्डल सोहिते कंठ मुकुत मनि माल || ५ || 
केशों से विभूषित शीश पर मुकुट तथा मस्तक पर सुन्दर तिलक लक्षित है उनके कानों में कुण्डल तथा कंठ में मणि माल सुशोभित हो रहे है | 

जगमग जगमग जोति जग जगत करत उद्दीप | 
मग मग मनि मंजरी से बरै मनोहर दीप || ६ || 
स्थान स्थान पर मणियों की पंक्तियों से मनोहर दीपक प्रज्ज्वलित हैं जिसकी जगमगाती ज्योति जागृत होकर समूचे संसार को उद्दीप्त कर रही है | 
  
नौ सक्ति कर दरसन हुँत भईं भीड़ अति भारि | 
होत चकित बिलोकि चलत सह बालक नर नारि || ७ || 
नवशक्ति के दर्शन हेतु भारी भीड़ उमड़ पड़ी है | नर नारी बालकों सहित माता की अनुपम झांकी को चकित होकर विलोकते चल रहे हैं | 

आजु नगर मनभावनी छाइ छटा चहुँ ओर | 
कहत नागर एक एकहि सहुँ होतब भाव बिभोर || ८ || 
सभी नागरिक एक दूसरे से कहते चल रहे हैं कि भई आज तो नगर में चारों ओर मनभावनी छटा छाई हुई है | 

छाए गगन आनंद घन चहुँ दिसि भरा उछाहु 
भाव भगति सों भरे भएँ प्रमुदित मन सब काहु || ९ || 
गगन में तो जैसे आनंद से परिपूर्ण हो रहा है चारों दिशाओं में उत्साह भरा हुवा है | भाव भक्ति से परिपूरित आज तो सभी का मन आल्हादित है | 




----- || राग-रंग31 | -----,

------ || राग-यमन || -----
देखु सिआ ए साँझि सेंदूरी | रुनझुन नुपूर चरन अपूरी ||
उतरि घटा ते धीरहि धीरे | चरत जहँ तहँ उठै रँग धूरी ||

कबहुँक आनि पुरट घट लेई | करसेउ रहट मुख पट देई ||
कबहुँ पनघट परि लट बिथुराए | बिहरत बावरि सुध बुध भूरी ||

कर कल कंकन कानन बूंदे | दरसत दरपन पलकनि मूंदे
माथ परि हिरन कनिका |  हंसक देइ अँगूरी ||

निर्झरनि जर मुकुत बखेरे | गह गह आँचर माहि सकेरे ||
बैसत बहुरि पवन करि डोला | बरखावत अह गहे अँजूरी ||

धरत मनोहर दीप दुआरा |  करिअति सबु देहर उजियारा ||
आगत रैनि दरस नभ चंदा | लेइ बिदा पिय गेह बहूरी ||