----- || राग-बहार || -----
एक बार कछुक निबासिहि, बसे रहे एक गाँव |
बहति रहि नदिआ कलकल जहँ तरुवर की छाँव || १ ||
एक बार एक गाँव में कुछ निवासी निवास करते थे वहां पेड़ों की घनी छाँव तले कलकल करती नदिया बहती थी |
लाल पील हरि नारंगी नान्हि नान्हि चीड़ |
चहक चहक सुठि धुनि करति बसबासत निज नीड़ | २ ||
लाल पिली हरी नारंगी रंग की छोटी छोटी चिढ़िया भी अपने नीड़ में निवासित रहते हुवे चहक चहक कर सुन्दर ध्वनि किया करती थी |
एक निबासिहि तिन्ह माहि निर्मम गहे सुभाए |
हिंस रूचि होत एक दिबस मारन तिन्हनि धाए | ३ |
उनमें से एक निवासी का स्वभाव नितांत निर्मम था हिंसा में उद्यत हुवा एक दिन वह उनकी ह्त्या करने के लिए दौड़ा |
पाहि पाहि कहि बिलोकति कातर नयन निहारि |
सुनि अबरु निबासिहि जबहि चिरियन केरि पुकारि || ४ ||
कातर दृष्टि से उसे निहार कर वह चिड़िया बचाओ बचाओ की पुकार करने लगी | एक दूसरे निवासी ने उसकी करुण पुकार सुनी |
करुनामय संत हरिदै गै तुर ता संकास |
छाँड़ि छाँड़ि पुकारि करत तुरत छड़ाइसि पास || ५ ||
वह करुणामयी संत हृदय तत्काल उसके पास गए और छोडो छोडो की पुकार कर उस चिड़ियाँ को निर्दयी के पाश से विमुक्त करा लिया |
दोइ दिवस पाछे दुनहु दरसिहि तरुबर तीर |
राखिहि को को मार चढ़ि परिचिहि अस तहँ भीर || ६ ||
दो दिवस व्यतीत होने के पश्चात दोनों ही एक वृक्ष के नीचे दिखाई दिए | रक्षा किसने की और कौन उसकी हत्या करने हेतु उद्यत हुवा यह जनमानस की भीड़ ने उसे इस प्रकार पहचाना |
देखु देखु चिडि राखिया ब्रह्मन कहँ पुकारि |
देखु रे चिडिमारु ओहि ए कह नाउ सहुँ धारि || ७ ||
देखो देखो वो रहा चिढ़िपाल, इस प्रकार कालांतर में चिढ़िआ का रक्षक ब्राह्मण पुकारा गया | देखो उस चिड़ीमार को ऐसा कहते हुवे हत्या को आतुर हुवे निवासी के नाम संगत चिड़ीमार या बहेलिया संलग्न कर पुकारा जाने लगा |
रखिया कहत पुकारेसि रखे जोइ सो नीड़ |
कन उपजाए तिन्ह गई बनिज कहत सो भीड़ || ८ ||
अब एक और दयालु उस नीड़ की रक्षा करने लगा उसे छत्रधारी रक्षक कहकर पुकारा जाने लगा | जिसने उस चिड़िया को कण देकर उसके भोजन का प्रबंध किया उसे वाणिज्यक कहकर पुकारने लगे |
तासोंहि कछु दूरदेस रहिअब अरु एक गाँउ |
दरस चिढि तहँ सबहि कहैं धरु धरु मारु रु खाउ || ९ ||
उस गाँव से कुछ दूरी पर एक दूसरे देस का गाँव था वहां चिढ़िया को देखकर सभी ने कहा पकड़ो ! पकड़ो ! मारो और खा जाओ |
तिन्ह माहि रहिअब कोइ रखिता न राखनहारु |
नहि को कन निपजावना सबहि भयउ चिढि मारु || १० ||
भावार्थ : - उस गाँव में न तो किसी न चिड़िया को बचाया न उसके नीड़ की ही रक्षा की और न किसी ने कण उपजाया | वहां सभी लोग चिड़ियाओं को मारकर खाने वाले कहलाए |
करत करत अस गाँव भित जाति पाति निपजाइ |
सबहि मारनहार जहाँ रहे तासु बिहुनाइ || ११ ||
इस प्रकार धर्मतस जन समूहों के अंतस से कर्म के आधार पर जातियों का प्रादुर्भाव हुवा जहाँ सभी मारने वाले स्वभाव के हुवे वह मानव वर्ग की इस जातिगत विशेषता से वंचित रहे |
कर्म बिहुने होत कहा दया धर्म परिहार |
हिंस रुचिरत जाएँ होइ हम सब मारन हार || १२ ||
भावार्थ : -अब आप ही निर्णय कीजिए क्या हम मानवोचित कर्म और दया धर्म का त्याग कर सभी चिड़िया को मारकर खाने वाले हिंसालु के जैसे हो जाएं ?
धर्म तहँ चिढि रूप धरे दया बचावन हार |
हंति तप दान कन दाइ साँच रूप रखवार || १३ ||
भावार्थ : - वहां धर्म ने चिड़िया का रूप धारण किया हुवा था दया ने बचानेवाले का रूप धारण किया था हत्यारे ने तप का रूप धरा था तथा कण देने वाले ने दान का रूप धारण किया हुवा था |
दया बिहुने दान बिनहि साँच बिनहि संताप |
जहाँ सबहि मारनहार रूप धरे तहँ पाप || १४ ||
भावार्थ : - जो गाँव दया दान सत्य और संताप से रहित था वहां साक्षात पाप ने धर्म का रूप धारण करने वाली चिड़िया को मारनेवाले का रूप धारण किया हुवा था |
एक बार कछुक निबासिहि, बसे रहे एक गाँव |
बहति रहि नदिआ कलकल जहँ तरुवर की छाँव || १ ||
एक बार एक गाँव में कुछ निवासी निवास करते थे वहां पेड़ों की घनी छाँव तले कलकल करती नदिया बहती थी |
लाल पील हरि नारंगी नान्हि नान्हि चीड़ |
चहक चहक सुठि धुनि करति बसबासत निज नीड़ | २ ||
लाल पिली हरी नारंगी रंग की छोटी छोटी चिढ़िया भी अपने नीड़ में निवासित रहते हुवे चहक चहक कर सुन्दर ध्वनि किया करती थी |
एक निबासिहि तिन्ह माहि निर्मम गहे सुभाए |
हिंस रूचि होत एक दिबस मारन तिन्हनि धाए | ३ |
उनमें से एक निवासी का स्वभाव नितांत निर्मम था हिंसा में उद्यत हुवा एक दिन वह उनकी ह्त्या करने के लिए दौड़ा |
पाहि पाहि कहि बिलोकति कातर नयन निहारि |
सुनि अबरु निबासिहि जबहि चिरियन केरि पुकारि || ४ ||
कातर दृष्टि से उसे निहार कर वह चिड़िया बचाओ बचाओ की पुकार करने लगी | एक दूसरे निवासी ने उसकी करुण पुकार सुनी |
करुनामय संत हरिदै गै तुर ता संकास |
छाँड़ि छाँड़ि पुकारि करत तुरत छड़ाइसि पास || ५ ||
वह करुणामयी संत हृदय तत्काल उसके पास गए और छोडो छोडो की पुकार कर उस चिड़ियाँ को निर्दयी के पाश से विमुक्त करा लिया |
दोइ दिवस पाछे दुनहु दरसिहि तरुबर तीर |
राखिहि को को मार चढ़ि परिचिहि अस तहँ भीर || ६ ||
दो दिवस व्यतीत होने के पश्चात दोनों ही एक वृक्ष के नीचे दिखाई दिए | रक्षा किसने की और कौन उसकी हत्या करने हेतु उद्यत हुवा यह जनमानस की भीड़ ने उसे इस प्रकार पहचाना |
देखु देखु चिडि राखिया ब्रह्मन कहँ पुकारि |
देखु रे चिडिमारु ओहि ए कह नाउ सहुँ धारि || ७ ||
देखो देखो वो रहा चिढ़िपाल, इस प्रकार कालांतर में चिढ़िआ का रक्षक ब्राह्मण पुकारा गया | देखो उस चिड़ीमार को ऐसा कहते हुवे हत्या को आतुर हुवे निवासी के नाम संगत चिड़ीमार या बहेलिया संलग्न कर पुकारा जाने लगा |
रखिया कहत पुकारेसि रखे जोइ सो नीड़ |
कन उपजाए तिन्ह गई बनिज कहत सो भीड़ || ८ ||
अब एक और दयालु उस नीड़ की रक्षा करने लगा उसे छत्रधारी रक्षक कहकर पुकारा जाने लगा | जिसने उस चिड़िया को कण देकर उसके भोजन का प्रबंध किया उसे वाणिज्यक कहकर पुकारने लगे |
तासोंहि कछु दूरदेस रहिअब अरु एक गाँउ |
दरस चिढि तहँ सबहि कहैं धरु धरु मारु रु खाउ || ९ ||
उस गाँव से कुछ दूरी पर एक दूसरे देस का गाँव था वहां चिढ़िया को देखकर सभी ने कहा पकड़ो ! पकड़ो ! मारो और खा जाओ |
तिन्ह माहि रहिअब कोइ रखिता न राखनहारु |
नहि को कन निपजावना सबहि भयउ चिढि मारु || १० ||
भावार्थ : - उस गाँव में न तो किसी न चिड़िया को बचाया न उसके नीड़ की ही रक्षा की और न किसी ने कण उपजाया | वहां सभी लोग चिड़ियाओं को मारकर खाने वाले कहलाए |
करत करत अस गाँव भित जाति पाति निपजाइ |
सबहि मारनहार जहाँ रहे तासु बिहुनाइ || ११ ||
इस प्रकार धर्मतस जन समूहों के अंतस से कर्म के आधार पर जातियों का प्रादुर्भाव हुवा जहाँ सभी मारने वाले स्वभाव के हुवे वह मानव वर्ग की इस जातिगत विशेषता से वंचित रहे |
कर्म बिहुने होत कहा दया धर्म परिहार |
हिंस रुचिरत जाएँ होइ हम सब मारन हार || १२ ||
भावार्थ : -अब आप ही निर्णय कीजिए क्या हम मानवोचित कर्म और दया धर्म का त्याग कर सभी चिड़िया को मारकर खाने वाले हिंसालु के जैसे हो जाएं ?
धर्म तहँ चिढि रूप धरे दया बचावन हार |
हंति तप दान कन दाइ साँच रूप रखवार || १३ ||
भावार्थ : - वहां धर्म ने चिड़िया का रूप धारण किया हुवा था दया ने बचानेवाले का रूप धारण किया था हत्यारे ने तप का रूप धरा था तथा कण देने वाले ने दान का रूप धारण किया हुवा था |
दया बिहुने दान बिनहि साँच बिनहि संताप |
जहाँ सबहि मारनहार रूप धरे तहँ पाप || १४ ||
भावार्थ : - जो गाँव दया दान सत्य और संताप से रहित था वहां साक्षात पाप ने धर्म का रूप धारण करने वाली चिड़िया को मारनेवाले का रूप धारण किया हुवा था |