Monday, August 13, 2018

----- || प्रभात-चरित्र ३ || -----

सोमवार, १२ अगस्त, २०१८                                                                                          
जुगत कतहुँ लघु लघु जन जूथा | अरु कहुँ अतिसय सघन बरूथा || 
बासत बसति बिरल बसबासा | कतहुँ भयउ सो सघन निवासा || 
कहीं तो छोटे छोटे जन समूह से और कहीं सघन स्वरूप में वृहद् समुदाय से युक्त वस्तियों में वासित कहीं विरल तो कहीं अत्यधिक सघन निवास थे। 

दए चौहट बट बीथि बनाई  | भयउ गाँउ पुर  नगर निकाई || 
रचत कुटुम नर संगत नारी |  जोग जुगावत गेह सँवारी ||  
मार्ग व् चौमुख मार्ग से युक्त पणग्रंथियों के निर्माण से  ग्राम व् पुर नगर निकाय में परिणित हो गए | पारिवारिक ईकाई की रचना करते हुवे अब नर  के संगत नारी समस्त साजसामग्रियों से गृह सुसज्जित करने लगे | 

भए निबास अब लखी निबासा | गह भू सम्पद भवन बिलासा || 
निवासहि कर ए सुँदर रचना | बरनन बरन न सबद न बचना ||
यह सुजज्जित निवास अब जैसे लक्ष्मी निवास हो गया पृथ्वी की विभूतियाँ  धारण कर मानव रचित भवन शोभा से युक्त होते चले गए | 

चारि भीति भा सुठि पहरारू | गेहि गहनि कह निज भरतारू || 
देहरि लोचन पलक किवारी | निगमागम लखि करिहि जुहारी ||  
चार सुन्दर रक्षकों के स्वरूप लिए चार भित्तियाँ की सरंचना से युक्त ये भवन गृही व् गृहणी को अपना स्वामी कहते | ये रक्षक देहली लोचन द्वार पट की पलकों से निगमागम का अभिवादन करते प्रतीत होते | 

मात पिता मह सह पितु माता | कहँ जनिमन निज जनिमन दाता || 
पुत पुतिका सन भगिनी भाई | एहि बिधि एहि संबंधु जनाई || 

प्रबेस द्वार रचत सहुँ आँगन देइ बिसाल |  
सयन सदन संग रचेउ  बिलगित भोजन साल || 
इन भवनों में प्रवेश द्वार के साथ एक विशाल आँगन निर्मित होता, अन्तस्थ में बहुतक शयन सदन के साथ एक पृथक भोजन शाला भी निर्मित की जाती | 

गेह गेह गहपति मिले बिरचत बृहद आगार | 
धरनि धाम धन धान ते भरे रहे भंडार || 
विशाल आगारों की रचना कर यह काल भूमि, भवन, धनधान्य के भंडार से परिपूर्ण था, दासत्व व् पाशविकता से दूर इस काल में गृह गृह में स्वामी मिलते | 

नियत नेम नै बाँध बिधाना | रचेउ जन जन केर प्रधाना || 
मुखिया राजन बोलि पुकारिहि | राज तंत्रन तहाँ संचारिहि |
कतिपय नियम-निति का नियतन कर फिर इन ग्राम्य व् नगरों में जन जन के प्रधान की रचना हुई, जहाँ इस प्रधान मुखिया को राजन कहा जाता वहां राजतांत्रिक शासन व्यवस्था संचालित होती | 

नेम लंघि हुँत रचे नियंता | राजन कहबत तब जन कंता || 
गाँव नगर पुर भए जब देसा | काल बिगत कहलाए नरेसा || 
नियमों का उल्लंघन करने वालों के हेतु अब न्यायकर्ता की रचना हुई तब यह राजन ( जन प्रमुख ) जनकान्त ( जनस्वामी ) कहलाने लगा |  ग्राम्य नगर पुर का यह समाहार जब देश में परिणित हुवा तब कालान्तर में यह जनकांत नरेश  ( जन जन का ईश्वर ) कहलाने लगा | 

गहे मंत्र कछु संगत मंत्रा | निपजे अस जन चारन तंत्रा || 
द्विजप सासन केरि इकाई | क्रमबत पँचक भाग बिरताई || 
कतिपय मन्त्रणाओं व् यत्किंचित मंत्रियों के संगत इस प्रकार जन्संचलान तंत्र का प्रादुर्भाव हुवा | ब्राह्मणों द्वारा संरचित वैदिक काल में प्रशासनिक ईकाई कुल, ग्राम, विश ( बीस ग्राम का समूह ) व् राष्ट्र में विभक्त थीं । 

कुल में कुलप गाँवाधिप, बिस में रह बिसितेस । 
जन के पत राजन कहत राजिहि देस नरेस ॥ 
कुल का प्रमुख कुलप, कुल के समूह ग्राम अथवा गाँव कहलाने लगा जिसका प्रमुख को  ग्रामाधिपति, बीस (२०)गाँव के अधिपति को ग्रामीण विंशतीश कहते । गाँव जब समृद्ध वसति में परिणित हुवा तब वह जनपद होकर नगर कहलाने लगा जिसके अध्यक्ष  को राजन कहा गया, कालांतर में यही राजन राष्ट्र अथवा देश का नरेश कहलाने लगा ॥

रचत देस रचिता कहे प्रथम बेद यह मंत्र । 
कतहुँ राजा राज रहे कतहुँ प्रजा के तंत्र ॥ 
भारत निर्माण के पश्चात् इस प्रकार वेद रचयिता ने प्रथम वेद में यह मन्त्र उद्घोषित किया कि यहाँ वैदिक युग में राजतंत्रात्मक शासन के सह कतिपय जनपदों में प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली भी प्रचलित थी ॥


बेद काल सह क्रांति काखा | प्रथमहि भुवन कोष परिलाखा || 
पढ़ ताहि दए भूत बिग्याना | बरगिकरन करि जिउ जग जाना || 
वैदिक काल में क्रांति कक्ष के सह सर्वप्रथम ब्रह्माण्ड को रेखांकित किया | ततपश्चात उसके अध्ययन कर संसार को भौतिक विज्ञान से परिचित करवाया | जीवों का वर्गीकरण कर जंतु जगत से परिचित हुवा | 

 पढ़त सोधत रसायन नाना |  दीन्हि जगत औषध बिहाना || 

तदनन्तर नाना रसों का अध्ययन कर संसार को औषधि विज्ञान प्रदत्त किया