Sunday, November 10, 2019

----- || राग-रंग 33 | -----,

                                        ------॥ छंद॥ -----
जागौ सागर सिंधुःशयनम् I जागौ जगमोहन जगन्मयम् ॥ 
उठौ हे देव जगदीस हरे। जोए कर जन जन बिनती करे ॥

जागौ भवभूति बिभूति वरं। जागौ सुदर्शन पाणिर्धरं ॥
माया बसिभूत सबु मूढमति । देएँ जिउ ताप करैं पाप अति॥

भरपूरत सुखसंपद सबही I भरे कोष परि मन तोष नही ॥
उठौ हे देव जग जाग करौ l जागतिक पाप संताप हरौ ॥

अजहुँ मन न भगति भाव भरे। तव चरनन नहि ध्यान परे॥
जागौ सागर सिंधुःशयनम् I जागौ जगमोहन जगन्मयम् ॥

उठौ देव हे जगदीस हरे।जोए कर जन जन बिनती करे ॥ 
जागौ भवभूति बिभूति वरं। जागौ सुदर्शन पाणिर्धरं ॥

माया बसिभूत सबु मूढमति।देएँ जिउ ताप करैं पापअति॥
भरपूरत सुखसंपद सबही I भरे कोष परि मन तोष नही ॥

उठौ हे देव जग जाग करौ l जागतिक पाप संताप हरौ ॥ 
अजहुँ मन न भगतिभाव भरे। तव चरनन नहि ध्यान परे॥

नहि साँच बचन नहि बदन गिरा।भई दारिद दीनहीन धरा॥ 
भमरत बहु पातक भार गही।जासु भय मोचनएकतुम्हही॥

जागौ जगपति जगदानंदम्l जागौ देव दीनदयाकरम्॥ 
उठौ हे भू भार भंजनम्Iत्याजो अजहुँ सिंधु: सदनम् ।