Monday, May 27, 2019

----- || राग-रंग 27| -----

-----|| भाषा एवं बोली | -----
अन्तर भाव केर परकासन | भाषा एकु केवल संसाधन ||
जासहुं अंतर भाव प्रकासा | सो साधन कहिलावहि भाषा ||


लिपि सोंहि संपन्न को साधन | करत भाष परिभाषा पूरन ||
अवधि लिपिहि नहि गई बँधाई | एहि हुँत सो बोली कहलाई ||


ब्याकरन धन कोष समाना | सम्पन होत गहे अधिकाना ||
साहित्य लिपिहि बधे बिचारू | गह भास् साहितिक गरुवारू ||


कोउ भाषा कि बोली कोई | ऊंच पदासन आसित होई ||
एहि आसंदि करत बिख्याता | होतब प्रगति केर प्रदाता ||


सनै सनै भाषा सोंहि बोली दिए निपजाए |
अरु साहित्य रचाए पुनि प्रगति पंथ कहुँ पाए ||

भावार्थ : - भाषा भावाभिव्यक्ति हेतु साधन मात्र है | भाषा वह साधन है जिससे अंतर भाव की अभिव्यक्ति सम्भव हुई | भावाभिव्यक्ति का कोई साधन लिपि से संपन्न होकर ही भाषा की परिभाषा को पूर्ण करता है | अवधि की लिपि नहीं है इस हेतु यह एक बोली है | व्याकरण भाषाओं की सम्पदा है यह सम्पदा कोष जिस भाषा में जितना अधिक होता है वह उतनी समृद्ध होती है | लिपिबद्ध विचार ही साहित्य है, साहित्यिक गौरव को प्राप्त होकर कोई भाषा अथवा बोली उच्च पद पर अभिषिक्त होती है यह अभिषिक्तता उसे जगत में प्रसद्धि व् उन्नति प्रदान करती है | भाषाओँ से ही शनै:शनै: बोलियों की व्युत्पत्ति हुई और साहित्य रचना से यह उन्नति को प्राप्त हुई…..

Thursday, May 23, 2019

----- || राग-रंग 26 | -----

----- || राग - बसंत मुकरी || -----
नदिआ प्यासि पनघट प्यासे प्यास मरए तट तट  रे | 
दै मुख पट धरि चली पनहारी प्यासे घट कटि तलहट रे || 
बिलखि रहँट त रहँट प्यासे बहोरि चरन बट बट लखिते | 
परबत प्यासे तरुबर प्यासे पए पए कह सहुँ पत निपते || 

दहरि प्यासी द्वार प्यासे दीठि धरिँ चौहट तकते | 
खग मृग प्यासिहिं प्यास पुकारत तल मीन तुल तिलछते   ||  
पंथ पंथ परि पथिक पयासे धरतिहि पय पयहि ररै  | 
पेखत पियूख मयूख मुख पिहु सहुँ मृगु मरीचिक जिहुँ धरैं || 

पलकन्हि परि करतल करि छाँवा हलधर नभस निहारते | 
भए हति साँसे पवन कैं काँधे निरख बिहून उदभार ते || 
तापन ऋतु अगजग झुरसावत पगपग जुआला धारते | 
ए बैरन जिअ की फिरहिं न फेरे, गए थकि थकि सबु हारते || 

काल मेघ घन लोचनहि अहुरे दरस परि न बरखा बहुरै | 
तरसत बूंद कहुँ कंठ ते ए जाचत सबहिं के पानि जुरै || 
हे जगजीवन जग बंदन तुअ घन साँवर कै  रूप बरौ | 
उठौ देउ हे सिंधु सदन सोंहि गगन सिंहासन पधरौ || 

नदी प्यासी पनघट तट तट प्यास से आकुलित हैं ( सभी को प्यासा देखकर ) पनहारी अपने प्यासे घड़े पानी मेघला के तलहट पर धरे मुख में आँचल दिए चल पड़ी जब कूप की घिरनी को भी प्यासा देखा तो मार्गों में तृप्त स्त्रोत की टोह करते लौट चली | पर्वत देखा पर्वत प्यासे तरुवर देखे तो तरुवर प्यासे और उन प्यासे तरुवरों पत्ते पानी-पानी कहते सम्मुख गिर रहे हैं | 

इधर प्यासी देहली और प्यासे द्वार चौपथ पर टकटकी लगाए जल हेतु प्रतीक्षा रत हैं | पशु-पक्षी प्यास प्यास पुकार जलहीन नदी तल की मीन के सदृश्य व्याकुलित हो रहे है | पंथ पंथ पर पथिक प्यासे हैं और धरती पानी पानी की रट लगाए चन्द्रमा का मुख निहारते चातक के समान रसना में मृग तृष्णा धारण किए हैं  | 

 पलकों पर हथेलियों की छाया किए आकाश की ओर निहारते हलधर पवन के कांधों को बादलों से रहित देख कर निराश हो गए  | यह ग्रीष्म ऋतू चराचर को झुलसाती मानो चरण चरण पर अग्नि का आधान कर रही है सब इसे लौट जाने के लिए कहकर हारते थक गए किन्तु प्राणों की ये वैरिन लौट नहीं रही | 

घने मेघ नभ में व्याप्त न होकर नेत्रों में आ ढहरें हैं  यह दर्शकर भी वर्षा ऋतू नहीं लौटती |  बून्द बून्द हेतु तरसते कंठ से  यह याचना करते सभी  हस्त आबद्ध हो गए कि संसार को जीवन प्रदान करने वाले विश्व वन्दित भगवन अब आप ही श्यामल मेघ का रूप वरण करो और अपने सिंधु सदन से उतिष्ठित होकर गगन का सिंहासन ग्रहण करो | 


Tuesday, May 21, 2019

----- || राग-रंग 25 | -----,

----- || राग-मालकोस || -----
फिर मौसमें-गुल खिल खिल के महकें..,
के गुंचों को छूके हवा मुस्कराई..,
फिर वादियों का लहराया दामन..,
दरीचे बिछाए हुवा सब्ज मैदाँ..,
बाग़ों की गुज़रगह परिंदों से चहके
आबशारों के गिरहों से छूटे फिर गौहर..,
शफ़क़ फूल के नरम-बादल पे बिखरी..,
लगी कश्तियाँ फिर बादबाने सजाए ..,
फिर शाम हलके से उतरी सहन में.....

सब्ज =हरा
गिरह = गाँठ
गौहर = मोती
शफ़क़ फूलना  =संध्या/प्रात: की लालिमा का प्रकट होना
बादबान = नावों की पालें
सहन = आँगन


'फिर दहनो- दर में हुई शम्मे-रौशन'





----- || राग-रंग 24 || -----,

----- || राग - हिंडोल || -----
पेड़ पेड़ परि चलै फुदकती |
डार डार धरे चरन गौरैया|| 
देअ सुरुज सिरु घाउँ तपावै आवत छत छाजन गौरैया | 
पिबत पयस पुनि दरस कसौरे खावै चुग चुग कन गौरैया ||
बैस बहुरि पवन हिंडौरे पँख पसारे गगन गौरैया |
चरत बीथि बिलखत अमराईं पूछत मालीगन गौरया ||
मधुर मधुर पुनि अमिया खावै गावत मधुर भजन गौरैया |
डगर डगर सब गाँव नगर रे बिहरै सब उपबन गौरैया ||
भरी भोर ते घोर दुपहरी रहै प्रमुदित मन गौरैया| 
साँझ सेंदुरि ढरकत जावै फिरै नसत बिनु छन गौरैया || 

Sunday, May 19, 2019

----- || काव्यमंडन 4 || -----,

सिर पे चोटी जय जय हो..,
कटी कछोटी जय जय हो..,
देखो साधू चन्दा बाँधै.., 
फेंक लगोंटी जय हो जय हो.., 

सुबहो सबेरे जय हो जय हो..,
धनी घनेरे जय हो जय हो.., 
सिंधु के तट ले उठावै..,
कुत्ते की ..... jay ho jay ho.., 

नेता जी की जय हो जय हो..,
अभिनेता जी की जय हो जय हो.., 
खा खा के हो गई उनकी..,
चमड़ी मोटी जय हो जय हो..,

गय्या मय्या जय हो जय हो.., 
माँगै रोटी जय हो जय हो.., 
खड़ी दुआरे तो उसको मारैं  .., 
ले के सोंटी जय हो जय हो.....

Tuesday, May 7, 2019

----- || राग-रंग 22 | -----,

------ || आम का अचार || ------
ले लो ले लो बाबुजी काचे काचे आम |
भरी बाँस  की टोकरी दोइ टका हसि दाम ||

साक पात फल कंद लिए बैसे बाट किनार |
हाट लगाए तुला धरे हाँक देइ हटबार ||

कोउ  सरौता कर गहे ऊँचे रहैं पुकार |
कटे आम त अचार है न तरु होत बेकार ||

हरदि लौन लगाई के फाँका दियो सुखाए |
सत कुसुमा तिछनक संग मेथी दएँ  मेलाएँ ||

बहुरि तिछ्नक तैल संग मेलत सबहीं फाँक |
काँचक केरे भाँड में भरिके राखौ ढाँक ||

शतकुसुमा = सौंफ
 तीक्ष्णक = पीली सरसौं
काँचक केरे भाँड = काँच का भाजन

----- || राग-ललित || -----
ज्वाल ज्वाल भए दिनकर मुख दरपत दहुँ दिसि दरस रहे |
जारन जिउजन किरन कर छन छन जुआला कन बरस रहे ||
कररत करषि भू त करषक करष करालिक कर गहे |
दहे दव दहे भव त दली नव दवनहि केसवाजुध लहे ||