----- || राग-मालकोस || -----
फिर मौसमें-गुल खिल खिल के महकें..,
के गुंचों को छूके हवा मुस्कराई..,
फिर वादियों का लहराया दामन..,
दरीचे बिछाए हुवा सब्ज मैदाँ..,
बाग़ों की गुज़रगह परिंदों से चहके
लगी कश्तियाँ फिर बादबाने सजाए ..,
फिर शाम हलके से उतरी सहन में.....
सब्ज =हरा
गिरह = गाँठ
गौहर = मोती
शफ़क़ फूलना =संध्या/प्रात: की लालिमा का प्रकट होना
बादबान = नावों की पालें
सहन = आँगन
'फिर दहनो- दर में हुई शम्मे-रौशन'
फिर मौसमें-गुल खिल खिल के महकें..,
के गुंचों को छूके हवा मुस्कराई..,
फिर वादियों का लहराया दामन..,
दरीचे बिछाए हुवा सब्ज मैदाँ..,
बाग़ों की गुज़रगह परिंदों से चहके
आबशारों के गिरहों से छूटे फिर गौहर..,
शफ़क़ फूल के नरम-बादल पे बिखरी..,लगी कश्तियाँ फिर बादबाने सजाए ..,
फिर शाम हलके से उतरी सहन में.....
सब्ज =हरा
गिरह = गाँठ
गौहर = मोती
शफ़क़ फूलना =संध्या/प्रात: की लालिमा का प्रकट होना
बादबान = नावों की पालें
सहन = आँगन
'फिर दहनो- दर में हुई शम्मे-रौशन'
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