Thursday, May 23, 2019

----- || राग-रंग 26 | -----

----- || राग - बसंत मुकरी || -----
नदिआ प्यासि पनघट प्यासे प्यास मरए तट तट  रे | 
दै मुख पट धरि चली पनहारी प्यासे घट कटि तलहट रे || 
बिलखि रहँट त रहँट प्यासे बहोरि चरन बट बट लखिते | 
परबत प्यासे तरुबर प्यासे पए पए कह सहुँ पत निपते || 

दहरि प्यासी द्वार प्यासे दीठि धरिँ चौहट तकते | 
खग मृग प्यासिहिं प्यास पुकारत तल मीन तुल तिलछते   ||  
पंथ पंथ परि पथिक पयासे धरतिहि पय पयहि ररै  | 
पेखत पियूख मयूख मुख पिहु सहुँ मृगु मरीचिक जिहुँ धरैं || 

पलकन्हि परि करतल करि छाँवा हलधर नभस निहारते | 
भए हति साँसे पवन कैं काँधे निरख बिहून उदभार ते || 
तापन ऋतु अगजग झुरसावत पगपग जुआला धारते | 
ए बैरन जिअ की फिरहिं न फेरे, गए थकि थकि सबु हारते || 

काल मेघ घन लोचनहि अहुरे दरस परि न बरखा बहुरै | 
तरसत बूंद कहुँ कंठ ते ए जाचत सबहिं के पानि जुरै || 
हे जगजीवन जग बंदन तुअ घन साँवर कै  रूप बरौ | 
उठौ देउ हे सिंधु सदन सोंहि गगन सिंहासन पधरौ || 

नदी प्यासी पनघट तट तट प्यास से आकुलित हैं ( सभी को प्यासा देखकर ) पनहारी अपने प्यासे घड़े पानी मेघला के तलहट पर धरे मुख में आँचल दिए चल पड़ी जब कूप की घिरनी को भी प्यासा देखा तो मार्गों में तृप्त स्त्रोत की टोह करते लौट चली | पर्वत देखा पर्वत प्यासे तरुवर देखे तो तरुवर प्यासे और उन प्यासे तरुवरों पत्ते पानी-पानी कहते सम्मुख गिर रहे हैं | 

इधर प्यासी देहली और प्यासे द्वार चौपथ पर टकटकी लगाए जल हेतु प्रतीक्षा रत हैं | पशु-पक्षी प्यास प्यास पुकार जलहीन नदी तल की मीन के सदृश्य व्याकुलित हो रहे है | पंथ पंथ पर पथिक प्यासे हैं और धरती पानी पानी की रट लगाए चन्द्रमा का मुख निहारते चातक के समान रसना में मृग तृष्णा धारण किए हैं  | 

 पलकों पर हथेलियों की छाया किए आकाश की ओर निहारते हलधर पवन के कांधों को बादलों से रहित देख कर निराश हो गए  | यह ग्रीष्म ऋतू चराचर को झुलसाती मानो चरण चरण पर अग्नि का आधान कर रही है सब इसे लौट जाने के लिए कहकर हारते थक गए किन्तु प्राणों की ये वैरिन लौट नहीं रही | 

घने मेघ नभ में व्याप्त न होकर नेत्रों में आ ढहरें हैं  यह दर्शकर भी वर्षा ऋतू नहीं लौटती |  बून्द बून्द हेतु तरसते कंठ से  यह याचना करते सभी  हस्त आबद्ध हो गए कि संसार को जीवन प्रदान करने वाले विश्व वन्दित भगवन अब आप ही श्यामल मेघ का रूप वरण करो और अपने सिंधु सदन से उतिष्ठित होकर गगन का सिंहासन ग्रहण करो | 


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