Saturday, April 13, 2019

----- || राग-रंग 21|| -----,

खेट खेड़ में बहति नहि अजहुँ बायु उनचास |
साजन मोरे देस सों बिछड़ गयो मधुमास || १ ||

बिरवा सँगत डारि बिछड़ी बिछड़े सुमन सुगंध |
संगी संगिनि पलक में बिहुर रहे गठ बंध || २ ||

जलधर जल धारे नहीं नदियन में नहि नीर |
मन में नाही धीर रे नैनन में नहि पीर || ३ ||

बस्ती बस्ती बासिते बसे बिनहि अब गेह |
पुरजन परिजन बीच सो रहे नहीं अस्नेह || ४ ||

साजन आस पड़ोस में दरस परायो बास |
पराधीन होत रहा ए देस दास का दास ||५  ||

अधिबासत बसबासते भीते भीतहि भीत |
तिनकी सिखाई चालनि बिसरि आपनी रीत || ६  ||

सरोबर सरोज बिनु भए मानस बिनु कल हंस |
कुलीन मलिने होत गए बिछुड़े निज कुल बंस || ७  |

जल मलिना बायु मलिनी मालिने ताल नद कूप |
निरबंसि सों बिगड़ गयो भगवन का सरूप || ८ || 

साजन मोरे देस जहँ बहति दूध की धार |
जनमानस अजहुँ तहँ रे खावैं जंतुहु मार || ९   ||

उपज अनाज मीन भई ताल भयउ अब खेत |
किरसक भया कसाइया  उर्बरता गहि रेत || १०  ||

भाषा भूषा बिगड़ गइ बिगड़ा खान रु पान |
दोनहु अजहूँ एकै भए मानस कहा स्वान || ११  ||

नहीं कतहुँ अमराइयाँ नहीं पीपल करि छाँए |
बालक मन फल फूल को दरसनहू तरसाए  || १२  ||

पोथी पत्तर माहि अब पढ़िते एहि सब कोए |
अमराई बौराए के कोयरि-कोयरि होए || १३ ||

भूयसि भव उपभोगते जन जन भए नरनाह |
भौनत भू थकि डोलती गहे तासु दुर्बाह || १४  ||

नीची करनि करनहार बैस ऊँच अस थान |
हँसा नीच बैसाए अब कागा देय ग्यान || १५ ||

न त सीतल चाँदनी अब नही सुनहरी धूप |
साजन मोरे देस का बिगड़ गयो रँग रूप || १६ ||

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