Sunday, July 6, 2025

----- || राग-रंग 58 | -----,

|| राग दरबार || 

खिला है गुलशन फ़िजा है महकी,

गिरी वो शबनम वो गुल मुस्कराए.....  


तेरी वज़ू पे हमें यकीं है तू बंद परवर यहीं कहीं है 

प्रभो हमारी अरज यही है 

तुम्हारी रहमत के हो हम पे साए....  


इक दर्दे दरिया ये जिंदगी है और ऊँची हस्ती भगवन तेरी है; 

फंसी है तूफ़ां में सब की किश्ती, 

है कौन रहबर तेरे सिवाए.....  

वज़ू= अस्तित्व 

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