----- || राग-भैरवी || -----
भक्तिकाल
बरखे रे पलकें कृष्ना साँझ सकारे..,
नैन गगन गहरत झरी लाए बिन सावन घन घारे..,
पलक पँवारे निसदिन तुहरे पंथ निहारे
पंथ निहारत भै पथरीले घरिभर पट नाहि डारे
हरिदए बिरजवा बूड़त जाए बह अस असुवन के जल धारे
कासि गाँठि देय रसन पिरोए जल माला कंठ उतारे
तापर प्यासे पिहु से दिनु राति तापर पिहु पिहु करत पुकारे
बूंद बूंद करि हरिअरि रे हरि निकसत तरफत प्रान हमारे
लेइ जाहु ए सनेस रे उद्धौ गह हम तोरे चरन जुहारे..,
कहँ जमुना तरु तृन तुल हमहि त्यज्यो बिनहि बिचारे
अपलक तुम्हरे पंथ निहारे
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----- || राग-भैरवी || -----
रीतिकाल
भक्तिकाल
बरखे रे पलकें कृष्ना साँझ सकारे..,
नैन गगन गहरत झरी लाए बिन सावन घन घारे..,
पलक पँवारे निसदिन तुहरे पंथ निहारे
पंथ निहारत भै पथरीले घरिभर पट नाहि डारे
हरिदए बिरजवा बूड़त जाए बह अस असुवन के जल धारे
कासि गाँठि देय रसन पिरोए जल माला कंठ उतारे
तापर प्यासे पिहु से दिनु राति तापर पिहु पिहु करत पुकारे
बूंद बूंद करि हरिअरि रे हरि निकसत तरफत प्रान हमारे
लेइ जाहु ए सनेस रे उद्धौ गह हम तोरे चरन जुहारे..,
कहँ जमुना तरु तृन तुल हमहि त्यज्यो बिनहि बिचारे
अपलक तुम्हरे पंथ निहारे
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----- || राग-भैरवी || -----
रीतिकाल
तुम बिन सुने रे मोरे साँझ सकारे
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