धौल गिरि से गिरे गंगा की पावन अर्द्धांगी धारा ।
यहाँ त्रिजट त्रिलोकि त्रिपुण्ड्र धरे वासे नाथ केदारा ।।१||
शिव शशिभूषण शिव त्रिशूल धर शिव शङ्कर ओंकारा |
शिव के शेखर कर जल अर्पण शिव शिव कह जग सारा ||२||
शिव शैल राज गौरी गिरिवर शिव सब देव दुआरा |
शिव काशी कैलास निवासी शिव सब चौंक चौबारा ||३||
नवल नीलोत्पल गरल कंठ शिव भुज भुजङ्गि हारा |
शिव महाकाल उज्जैन नगर हर हर कह उच्चारा ||४||
शिव प्रियङ्कर शिव सिरोधर कर पारग सिंधु अपारा |
राम रमेश्वर रमा नरेश ने लंका को उपकारा ||५||
बैद्य नाथ के धाम धरे जन कंधे काँवड़ भारा |
यहाँ शिवंकर धरनी पर धर रावण गया सँहारा ||६||
त्रयंबकेश स्वरूप महेश का जप जग उद्धारा |
सोमनाथ के शिव की महिमा त्रिभुवन में अपरम्पारा |
इस ज्योतिर् लिंग की ज्योति ने जग को उजियारा ||८||
डमरूधर का जब डमरू डम डम डम ध्वनित कारा |
नटवर नागधर नागेश्वर दारूकावन आधारा |
गगन गगन में गूंज रहा शिव शम्भो का जयकारा ||१०||
श्रीशैलम में शृंगप्रियम् का दर्शे दर्श न्यारा ||११||
शिव सत्यम् शिवम् सुंदरम् शिव भव प्रलयंकारा |
रुद्ररूपधर महादेव ने भीमा को उद्धारा ||१२||
शिव प्रियंकर = रुद्राक्ष,धतूरा,बिल्वपत्र, इत्यादि
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