Friday, July 4, 2025

----- || राग-रंग 56 || -----,

जयकार धुनि कर बजत दुंदुभि चढ़त बिप्रवर धुजा धरे । 

मुख शंख अपुरत भयो केतु मत् कासत कलस कै कँगुरे ॥ 

अरुन सारथी सौँ सुर पथ रबि रथ यान लेय आन खड़े । 

सप्त तुरग कै बाढ़े चरण जौं जगननाथ ऊपरि चढ़े ॥ 


बैसे रथ सोहत जगनाथा । सुभद्रा बल भद्र के रे साथा ।। 

बोलें भगत बाँधि के डोरे l कस कस करतल चल खैँचो रे ।l


बढ़े चलै लै रथ रतनारा | गुँजरहि जहँ तहँ जय जय कारा || 

नगर नगर पुर कै नर नारी | जुड़ जुड़ भई भीड़ अति भारी || 


राजित रथ हरि की छबि छलके  | मधुर मनोहर झाँकी झलके  | 

पंथ बिछावे पलक पँवारे | नैन निहार निहार न हारे || 


बाजै गह घन ढोल मजीरे | लेइ बढ़े रथ धीरहि धीरे || 
बारि निछाबरि हो बलिहारै | कौसुम अँजुरी नभ बौछारे || 

करहिं आरती जन बिच बीचा | सपत दिबस बस बास गुँडीचा ||  

अरुन रथी रथ चरन फेराए | निज मँगलालै नाथ बहुराए || 


साजै गौपुर गृह गली गली | जनु सब साखी रल मेलि चली || 

बाजै बाजन बृंद घनघोरा  | गगन भेद घन चहुँ दिसि ओरा || 

पूज नबैद्य चढ़ावहिं सब द्वारहि द्वार | 
जय जय कारी करत जन प्रनमत बारहि बार || 
 







बंदन कर जोरे | चरन पखारें 

छन छन सुमन कै अँजुरि छूटै | भर लोचन सब सोभा लूटै | 

 मंगल गावैं 

अति मनोहर छतर सिरु छावा  | रतन राजि रचि देय बनावा || 





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