जयकार धुनि कर बजत दुंदुभि चढ़त बिप्रवर धुजा धरे ।
मुख शंख अपुरत भयो केतु मत् कासत कलस कै कँगुरे ॥
अरुन सारथी सौँ सुर पथ रबि रथ यान लेय आन खड़े ।
सप्त तुरग कै बाढ़े चरण जौं जगननाथ ऊपरि चढ़े ॥
बैसे रथ सोहत जगनाथा । सुभद्रा बल भद्र के रे साथा ।।
बोलें भगत बाँधि के डोरे l कस कस करतल चल खैँचो रे ।l
बढ़े चलै लै रथ रतनारा | गुँजरहि जहँ तहँ जय जय कारा ||
नगर नगर पुर कै नर नारी | जुड़ जुड़ भई भीड़ अति भारी ||
राजित रथ हरि की छबि छलके | मधुर मनोहर झाँकी झलके |
पंथ बिछावे पलक पँवारे | नैन निहार निहार न हारे ||
बाजै गह घन ढोल मजीरे | लेइ बढ़े रथ धीरहि धीरे ||
बारि निछाबरि हो बलिहारै | कौसुम अँजुरी नभ बौछारे ||
करहिं आरती जन बिच बीचा | सपत दिबस बस बास गुँडीचा ||
अरुन रथी रथ चरन फेराए | निज मँगलालै नाथ बहुराए ||
साजै गौपुर गृह गली गली | जनु सब साखी रल मेलि चली ||
बाजै बाजन बृंद घनघोरा | गगन भेद घन चहुँ दिसि ओरा ||
पूज नबैद्य चढ़ावहिं सब द्वारहि द्वार |
जय जय कारी करत जन प्रनमत बारहि बार ||
बंदन कर जोरे | चरन पखारें
छन छन सुमन कै अँजुरि छूटै | भर लोचन सब सोभा लूटै |
मंगल गावैं
अति मनोहर छतर सिरु छावा | रतन राजि रचि देय बनावा ||
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