हविर् धूम से आवरित, हंस हिरन संकास ।
पथ पथरिले लाँघ चरन,चले सोइ कैलास ॥
:--पथरिले पंथो को उल्लॉघते हुए चरण उस कैलाश को चले जो होम के धूम्र से आवृत रजत स्वर्ण की आभा लिए है हंस संकाश = रजताभ हिरण्य संकाश= स्वर्णाभ
हिम उरेखित ऊँ आकृत पर्वत के उस पार ।
दृष्टीगोचर हो रहा जहाँ यम का द्वार ॥
:-- हिम द्वारा प्राकृतिक रूप से उल्लेखित ॐ आकृति युक्त पर्वत के पारगम्य जहाँ यम का द्वार दृष्टि गोचर होता है.....
शिव गति गहती औतरेँ चतुर नदीँ की धार।
दिशा दिशा में दिव्यतम गूंज रहा ऊँकार ॥
:--शिवगति= समृद्धि को गृहण करती जहाँ चातुर्य सरिताओं की धाराओं का अवतरण होता है ऐसे कैलाश पर्वत की दिशा दिशा में ॐ प्रणयाक्षर की दिव्यमय गूँज गुँजारित होती है
शिव शंकर शंभु जी को प्रणमन सौ सौ बार ।
तिन्हके सपरिवार को विनयवत नमस्कार ॥
पाषणों से हो रहा अनहत का निहनाद ।
ईश्वर का रहस्य मय सृष्टी से संवाद ॥
:--पाषाणों से प्रस्फूटित होती ब्रम्हध्वनि से युक्त सृष्टी से ईश्वर के संवाद द्वारा परम तत्व के रहस्य की सात्विकता का आत्मानुभव अद्भूत है
नक्षत्रों की माला गुँथे,चंद्र जोत जगराएँ ।
देव उतारे आरती, दिशा दिशा उजराएँ ॥
:--नक्षत्रों की माला गूँथ चंद्र ज्योति जागृत कर दिशा दिशा प्रदीप्त करते देवता मध्य रात्रि के समय भगवान शिव की आरती करते है
सत्वती पार्वती के मन मानस का ताल।
कल कल धुनि कर विचरते, दरसे राज मराल ॥
:--सत्यवती माता पार्वती मन मानस का पवित्र सरोवर में कल कल की ध्वनि कर विचरण करते राजहंस दर्शनीय हैं
कमंडल धर के निर्मल जल की बस एक बूँद ।
सेष सयन के ता सौँहि बिरथा सात समूँद ॥
:--कमंडल धारी शिव जी के इस पवित्र मान सरोवर की एक बूंद के सम्मुख शेष शयन भगवान विष्णु के सप्त सिंधु व्यर्थ प्रतीत होते हैं
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