Friday, August 1, 2025

----- || राग-रंग 67|| -----,

सुनि जूँ दसरथ राज जनक के दूतक दुआरी खड़े । 

पुनि लेंइ बुला तिन्ह सादर देइ मान अगुवान बढ़े ॥ 

भए पुलकित प्रमुदित बिनय पूरित जौँ पाती पढ़े । 

जोग लिखे सब आखर प्रगाढ़त सनेह सामध गढ़े ॥ 

:-- सामध गढ़े = संबंध रचे 

:--  जनक जी के दूत द्वार पर प्रतीक्षारत हैं राजा 


अस जानि परम सुखमानि कि संभु धनुर सुत भंग करे । 

सभा जीत जय माल मेल उर गए जानकी सौंहि बरे ॥ 

अंतर मन भाव पुरायो निलयन में आनंद भरे । 

आनि जोइ सुत कई सुरतिआ नैनन ते जल बूँद झरे ॥ 

उर = वक्ष निलय = हृदय भवन 


सिय राम बिबाहु कई आनि भइँ सो सुभ मंगल घरी। 

जाचक गन दीन्हि हँकार फेरिबारि न्यौछाबरी ॥ 

परिअ भावनी भवन भवन मनिमय झलामल झालरी । 

हेम बौरि सुठि बँधिअ डोरि पौँरि पौँरि गईँ भाँवरी ॥ 

हेम बौर = स्वर्ण पुष्प, सुठि = सुंदर पौँरि पौरि = ड्योड़ि ड्योड़ि 


रामसियाँ कै बिबाहु दरस अभिलाहु दृग जोह चले । 

पीतम पाटल पाटंबर पहिर पहिर सब सोह चले ॥ 

सदन सदन सौं पुरजन परिजन संग संग होह चले l 

मधुरिम मद्धम मंगल सुर गान करत मन मोह चले ll 

पाटल = श्वेत रक्त वर्ण पाटंबर = चमकिले वस्त्र 


नगर नारिं लिएँ आरती, गहे सुमंगल थारिँ । 

सुरभि सुमन बरसाए के, देखहिं चढिँअ अटारिँ ॥ 

अटारि = अट्टालिकाएँ


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