सुनि जूँ दसरथ राज जनक के दूतक दुआरी खड़े ।
पुनि लेंइ बुला तिन्ह सादर देइ मान अगुवान बढ़े ॥
भए पुलकित प्रमुदित बिनय पूरित जौँ पाती पढ़े ।
जोग लिखे सब आखर प्रगाढ़त सनेह सामध गढ़े ॥
:-- सामध गढ़े = संबंध रचे
:-- जनक जी के दूत द्वार पर प्रतीक्षारत हैं राजा
अस जानि परम सुखमानि कि संभु धनुर सुत भंग करे ।
सभा जीत जय माल मेल उर गए जानकी सौंहि बरे ॥
अंतर मन भाव पुरायो निलयन में आनंद भरे ।
आनि जोइ सुत कई सुरतिआ नैनन ते जल बूँद झरे ॥
उर = वक्ष निलय = हृदय भवन
सिय राम बिबाहु कई आनि भइँ सो सुभ मंगल घरी।
जाचक गन दीन्हि हँकार फेरिबारि न्यौछाबरी ॥
परिअ भावनी भवन भवन मनिमय झलामल झालरी ।
हेम बौरि सुठि बँधिअ डोरि पौँरि पौँरि गईँ भाँवरी ॥
हेम बौर = स्वर्ण पुष्प, सुठि = सुंदर पौँरि पौरि = ड्योड़ि ड्योड़ि
रामसियाँ कै बिबाहु दरस अभिलाहु दृग जोह चले ।
पीतम पाटल पाटंबर पहिर पहिर सब सोह चले ॥
सदन सदन सौं पुरजन परिजन संग संग होह चले l
मधुरिम मद्धम मंगल सुर गान करत मन मोह चले ll
पाटल = श्वेत रक्त वर्ण पाटंबर = चमकिले वस्त्र
नगर नारिं लिएँ आरती, गहे सुमंगल थारिँ ।
सुरभि सुमन बरसाए के, देखहिं चढिँअ अटारिँ ॥
अटारि = अट्टालिकाएँ
 
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