जिन हाथों के लोहमयी हल पर..,
चमकते प्रस्वेद कणों के बल पर..,
दसों दिशाएं ज्योतिर होती थीं..,
वो किसान कहो कौन थे..,
जिनके श्रम-बिंदु संच कर धरती..,
कणिका-कणिका कनकमय करती..,
माणिक मुक्ता माल पिरोती थी..,
वो किसान कहो कौन थे .....
चमकते प्रस्वेद कणों के बल पर..,
दसों दिशाएं ज्योतिर होती थीं..,
वो किसान कहो कौन थे..,
जिनके श्रम-बिंदु संच कर धरती..,
कणिका-कणिका कनकमय करती..,
माणिक मुक्ता माल पिरोती थी..,
वो किसान कहो कौन थे .....
No comments:
Post a Comment