Friday, November 30, 2018

----- || काव्यमंडन २ || -----

जिन हाथों के लोहमयी हल पर..,
चमकते प्रस्वेद कणों के बल पर..,
दसों दिशाएं ज्योतिर होती थीं..,
वो किसान कहो कौन थे..,


जिनके श्रम-बिंदु संच कर धरती.., 
कणिका-कणिका कनकमय करती.., 
माणिक मुक्ता माल पिरोती थी..,
वो किसान कहो कौन थे .....

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