Friday, November 16, 2018

----- || राग-रंग १२ ||-----,

----- || राग -भैरवी || -----
जागौ रे हे सिंधु सयन
जागौ हे जगन्नाथ हरे
जगरावत जग जागति ज्योति घरि भर के ही सार बरे..,
गगन सदन रबि पियबर जागे प्रभा पद धूरि सीस धरे..,
नभपथ अरुन सारथी संगत रस्मि गहे रथ सथ उतरे..,
पधरत नदि नदि परबत परबत करत भोर अंजोर भरे..,
जागौ तुमहु हे सिंधु सयन..

रैन बसेरा छाँड़ के पाँखि सैन बिहुरे नभ उड़ि चरे..,
कुसुमित भयउ सब कुञ्ज निकुंज सकल सुमन बन माल परे..,
सकल सरोजल भयउ सरोजी ओस बूँदि के मुकुत घरे..,  
निर्झरीं सों झरी निरझरनी झरझर जर रमझोर झरे..,  
जागौ रे हे सिंधु सयन..

रैन सलोनी पग बहुराई फूटहि पौ पँवरे पँवरे..,
सुबरन मई भई अँगनाई द्वार पुर गोपुर सँवरे 
अरुन चूड़ कर जोरि निहोरत बिनत सीस बोलत भँवरे.., 
हे कमल नयन तोहि पुकारत तुहरे भगत जुहार करे.., 
जागौ रे हे सिंधु सयन.....
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जागौ रे मम लाल मनोहर
सैन बसाए नैन भवन हरि रहो नहि  ललना सोइ परे
गगन सदन रबि पियबर जागे प्रभा पद धूरि सीस धरे..,
जगरावत जग जागति ज्योति घरि भर के ही सार बरे..,
नभपथ अरुन सारथी संगत रस्मि गहे रथ सथ उतरे..,
पधरत नदि नदि परबत परबत करत भोर अंजोर भरे..,
जागौ तुमहु हे सिंधु सयन..



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