----- || राजस्थानी-धुन || -----
कर्यो तिलक लिलारा केसर्यो..,
चौक पुराया आँगणियो प्यारो पावणा पधर्यो ..,
मेल्यो जोड़ो रो लस्करिआ पिचरंगी पागड़ो पहर्यो..,
पगां लखीना मोचड़ा जी हाथ हीराजड़ मूंदड़ा..,
सो व सोरठड़ी कटियार करधन उप्पर फेंटा फिर्यो..,
सोवनी ऊछली घोड़ी बरणी सै जी राजकुमारी..,
कान्हो बजावै बंसरी नगरी तावड़िया पग धर्यो..,
ओजी रंगाद्यो बाला चुनड़ी घढ़ द्यो बैंयारो चुडलो..,
न्यारो नौलड़ी रा हार जी ढोला बांकड़ा मनहर्यो..,
मांग्यो मेलियो सोहाग बर परमेश्वर धण भाग रो ..,
जीवणजोति हरि को रूप महान्यो ब्यावण चढ़्यो ..,
हाल्दि उबटणों अन्हायो रांच्यो मेहन्दड़ि हथेलवो..,
घाल्यो कोयाँ रो काजलों जी ढोला सांवड़ा सँवर्यो..,
म्हारो बिंदणों म्हारो कानड़ो सो तो म्हारो राज..,
पल्लो जिरंजीव को डुपटो घुल घुल गाँठा पड़्यो.....
भावार्थ : - चौंक पूर्णित आँगन ( आटे की आयातकार रचना जिसके ऊपर चौंकी रखकर वर का स्वागत किया जाता है ) में हृदय प्रिय अतिथि पधार रहे हैं अरे तिलक ! तुम उनके मस्तक की आभा को केसरी रंग से युक्त करना | उन्होंने ने दैदिप्यवान आभूषा धारण की है उसपर मेल करती पञ्चवर्णवाली पगड़ी है | उनके चरण में.......... उनके हाथ में हीराजटित मुद्रिका है करधन पर सोरठ की कटार सुशोभित है जिसके ऊपर कटिबंध आबद्ध है | सुन्दर घोड़ी उछल कर निवेदन कर रही हमें राजकुमारी का वरण करना है | सम्मुख भगवान कृष्ण का बांसुरी वादन संकेत कर रहा है कि नगर के तालाब के निकट उनका पदार्पण हो चुका है | अब इस कन्या की भी चुनरी रंगवा दो कलाई के कंगन नौलड़ियों से युक्त अद्वितीय हार गढ़वा दो हमारा ढोला (प्रियतम ) अत्यंत मनोहर और आकर्षक है | धन्य भाग! जैसा माँगा वैसा जीवनसाथी मिला ये वर परमेश्वर के सदृश्य व् जीवनज्योति विष्णुस्वरूप हैं जो मुझसे विवाह करने हेतु आए हैं | हल्दी उबटन से स्नान कर हथेली पर मेहंदी रची नेत्र पोरों को अंजन से युक्त कर इस प्रकार प्रियतम अत्यंत मनोयोग से सुसज्जित हुवे है अरे आँचल ! तुम हमारे उस प्राणाधार चिरंजीवी के दुपट्टे में अतिशय सुदृढ़ ग्रंथि करना |
कर्यो तिलक लिलारा केसर्यो..,
चौक पुराया आँगणियो प्यारो पावणा पधर्यो ..,
मेल्यो जोड़ो रो लस्करिआ पिचरंगी पागड़ो पहर्यो..,
पगां लखीना मोचड़ा जी हाथ हीराजड़ मूंदड़ा..,
सो व सोरठड़ी कटियार करधन उप्पर फेंटा फिर्यो..,
सोवनी ऊछली घोड़ी बरणी सै जी राजकुमारी..,
कान्हो बजावै बंसरी नगरी तावड़िया पग धर्यो..,
ओजी रंगाद्यो बाला चुनड़ी घढ़ द्यो बैंयारो चुडलो..,
न्यारो नौलड़ी रा हार जी ढोला बांकड़ा मनहर्यो..,
मांग्यो मेलियो सोहाग बर परमेश्वर धण भाग रो ..,
जीवणजोति हरि को रूप महान्यो ब्यावण चढ़्यो ..,
हाल्दि उबटणों अन्हायो रांच्यो मेहन्दड़ि हथेलवो..,
घाल्यो कोयाँ रो काजलों जी ढोला सांवड़ा सँवर्यो..,
म्हारो बिंदणों म्हारो कानड़ो सो तो म्हारो राज..,
पल्लो जिरंजीव को डुपटो घुल घुल गाँठा पड़्यो.....
भावार्थ : - चौंक पूर्णित आँगन ( आटे की आयातकार रचना जिसके ऊपर चौंकी रखकर वर का स्वागत किया जाता है ) में हृदय प्रिय अतिथि पधार रहे हैं अरे तिलक ! तुम उनके मस्तक की आभा को केसरी रंग से युक्त करना | उन्होंने ने दैदिप्यवान आभूषा धारण की है उसपर मेल करती पञ्चवर्णवाली पगड़ी है | उनके चरण में.......... उनके हाथ में हीराजटित मुद्रिका है करधन पर सोरठ की कटार सुशोभित है जिसके ऊपर कटिबंध आबद्ध है | सुन्दर घोड़ी उछल कर निवेदन कर रही हमें राजकुमारी का वरण करना है | सम्मुख भगवान कृष्ण का बांसुरी वादन संकेत कर रहा है कि नगर के तालाब के निकट उनका पदार्पण हो चुका है | अब इस कन्या की भी चुनरी रंगवा दो कलाई के कंगन नौलड़ियों से युक्त अद्वितीय हार गढ़वा दो हमारा ढोला (प्रियतम ) अत्यंत मनोहर और आकर्षक है | धन्य भाग! जैसा माँगा वैसा जीवनसाथी मिला ये वर परमेश्वर के सदृश्य व् जीवनज्योति विष्णुस्वरूप हैं जो मुझसे विवाह करने हेतु आए हैं | हल्दी उबटन से स्नान कर हथेली पर मेहंदी रची नेत्र पोरों को अंजन से युक्त कर इस प्रकार प्रियतम अत्यंत मनोयोग से सुसज्जित हुवे है अरे आँचल ! तुम हमारे उस प्राणाधार चिरंजीवी के दुपट्टे में अतिशय सुदृढ़ ग्रंथि करना |
वाह वाह
ReplyDeleteपरम सम्मान के साथ ,
क्षेत्रपाल