----- || राग-दरबार || -----
अपनी शम्मे-रु को अब..,
मैं किस तरह अर्जे-हाल करूँ..,
शाम ज़रा स्याहे-गूँ तो हो..,
लम्हे भर को तू हिज़ाब कर..,
सिल्के-गौहरे-गुल के दस्त..,
मैँ ख्वाबे-शब विसाल करूँ.....
लो फिर हर शै हुई ज़ाहिरॉ..,
ए चाँद तेरे नूर से..,अपनी शम्मे-रु को अब..,
मैं किस तरह अर्जे-हाल करूँ..,
शाम ज़रा स्याहे-गूँ तो हो..,
लम्हे भर को तू हिज़ाब कर..,
सिल्के-गौहरे-गुल के दस्त..,
मैँ ख्वाबे-शब विसाल करूँ.....
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