----- || राग-भैरवी ||-----
सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||
जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||
नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||
रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि ||
कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि |
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि ||
रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||
मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संख |
अब लगि बिकसे न ललना तुहरे पलकनि पंख ||
अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए |
सुनहु लाल तू सो रहे नैनन नींद बसाए ||
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सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||
जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||
नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||
रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि ||
कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि |
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि ||
रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||
मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संखि |
अब लगि बिकसे नाहि हरि तुहरे पलकनि पंखि ||
अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए |
सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||
जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||
नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||
रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि ||
कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि |
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि ||
पुहुप रथ पथ चरन धरत प्रस्तारत पत पुञ्ज |
सुरभित भई कुञ्ज गलीं कुसमित भयो निकुञ्ज ||
जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह |
बाल बच्छ मुख चुम्बती बरखत नेह सनेह || जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह |
रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||
मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संख |
अब लगि बिकसे न ललना तुहरे पलकनि पंख ||
अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए |
सुनहु लाल तू सो रहे नैनन नींद बसाए ||
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सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||
जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||
नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||
रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि ||
कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि |
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि ||
पुहुप रथ पथ चरन धरत प्रस्तारत पत पुञ्ज |
सुरभित भई कुञ्ज गलीं कुसमित भयो निकुञ्ज ||
जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह |
बाल बच्छ मुख चुम्बती बरखत नेह सनेह || जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह |
रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||
मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संखि |
अब लगि बिकसे नाहि हरि तुहरे पलकनि पंखि ||
अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए |
सुनहु देव तुअ सो रहे नैनन नींद बसाए ||
a non pair ell poet , a philosopher and a guide.
ReplyDeletewith highest regards ....
Kshetrapal sharma