Tuesday, November 13, 2018

----- || राग-रंग ७ | -----,

----- || राग-भैरवी ||-----

सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||

जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||

नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||

रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि || 

कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि | 
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि || 


पुहुप रथ पथ चरन धरत प्रस्तारत पत पुञ्ज | 
सुरभित भई कुञ्ज गलीं कुसमित भयो निकुञ्ज ||

जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह | 
बाल बच्छ मुख चुम्बती बरखत नेह सनेह || 

रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||

मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संख |
अब लगि बिकसे न ललना तुहरे पलकनि पंख ||

अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए | 
सुनहु लाल तू सो रहे नैनन नींद बसाए || 

--------------------------------------------------------------------

सरद रितु की भोर भई खिली रूपहरि धूप |
सहुँ सरोजल दरपन दृग दरसत रूप अनूप ||

जग जगराति ज्योति जौं सोइ पलकन्हि मूँद |
निद्रालस मुखमण्डल तौं गिरीं ओस की बूँद ||

नैन वैन मलिहाए के गहे मलिन मुख ओज |
नभगत बिकसत बालरबि सरसत सरस सरोज ||

रुर जल नूपुर चरन दिए चलत सरित सुर मेलि |
तीर तरंगित माल लिए भेला संगत भेलि || 

कटितट मटुकी देइ के घट लग घूँघट घारि | 
आन लगी पनिया भरन पनघट पे पनहारि || 


पुहुप रथ पथ चरन धरत प्रस्तारत पत पुञ्ज | 
सुरभित भई कुञ्ज गलीं कुसमित भयो निकुञ्ज ||

जगार करत रंभत गौ गोठ गोठ सब गेह | 
बाल बच्छ मुख चुम्बती बरखत नेह सनेह || 

रैन बसेरा बिहुर के छाँड़ बहुरि तरु साखि |
पंगत बाँधत उड़ि चले गहे पाँख नव पाँखि ||

मंदिरु खंखन देइ रे अपुरावत मुख संखि |
अब लगि बिकसे नाहि हरि तुहरे पलकनि पंखि ||

अगजजगज जगराए के रैनि चरन बिहुराए | 


सुनहु देव तुअ सो रहे नैनन नींद बसाए || 

1 comment:

  1. a non pair ell poet , a philosopher and a guide.


    with highest regards ....
    Kshetrapal sharma

    ReplyDelete