किन्हा निसि दिन सुमिरन जग का हरि सुमिरन बिसराया l
सोई कर्मन करतब माना, जब जस जौ मन भाया l
पद पद भरमते कुपथ चरिया सद्पथ तै भरमाया l
कहि फिरा मैं परम परबोधा पत कइ ना पतियाया l
बुध कइ बतियाँ सुधि सुधि बाहुर बहुर बहुर बिहुराया l
भूरि भूरि भव भोगन भोगा पहिरा सोया खाया l
धरणि परबत लए उत्खंदिया काँकरि चुग चुग लाया l
हरियारी थल मरूथल किन्हा भू भू भवन रचाया l
जोड़ि जोड़ि कै भया करोड़ी एकै न धरम लगाया l
जिअ निकसावत न गयउ पयादहि चातुर कंध बुलाया l
मन भर लाकर दाहन माँगा धरिअ चिता जबु काया |
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