Wednesday, June 18, 2025

----- || राग-रंग 42 || -----,

युद्ध की विभीषिका में आयुधो की चिंघाड़ l 

धृष्टता का द्वंद्ध दृश्य धमाकों की दहाड़ ॥

 

चट्टानों के चीथड़े उड़ उड़के गिर पड़े ll 

गिरा कहीं धड़ धड़ा के धड़ाके से पहाड़ ll 


क्रूरता की ज्वाल छन छटक सामने अड़े । 

थर थर्रा के झाँकते झाड़ो के झंझाड़ ॥ 


विध्वंशिका के ध्वस्तिचर्य धड़े लिए खड़े । 

हृदय विदीर्ण धड़कनें धड़कती धाड़ धाड़ ॥ 


तड़फड़ाते ध्वजी पर क्रुद्ध दंष्ट्रि आ गड़े । 

चीखती घृणा का घोष धड़े से दो उखाड़ ॥ 


देही देही दग्ध व्रण मनुजता रक्तसार । 

नाड़ियों से लिपटे हुए जीर्ण शीर्ण हाड़ ॥ 


भग्न होके यत्र तत्र भाग उठी भगदड़े | 

भड़काके भड़ भड़ाके खड़ा चिता का भाड़ ॥ 


खड़ खड़ाती खड्ग धार से चिंगारियां झड़े । 

तुंड दंड व्यूह बढ़े , मंडलकों को फाड़ ॥ 


हृदय का एक प्रांत था सौम्य शील शांत । 

लगा कंठ फड़फड़ाते नीड़ का एक निवाड़ ॥


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