युद्ध की विभीषिका में आयुधो की चिंघाड़ l
धृष्टता का द्वंद्ध दृश्य धमाकों की दहाड़ ॥
चट्टानों के चीथड़े उड़ उड़के गिर पड़े ll
गिरा कहीं धड़ धड़ा के धड़ाके से पहाड़ ll
क्रूरता की ज्वाल छन छटक सामने अड़े ।
थर थर्रा के झाँकते झाड़ो के झंझाड़ ॥
विध्वंशिका के ध्वस्तिचर्य धड़े लिए खड़े ।
हृदय विदीर्ण धड़कनें धड़कती धाड़ धाड़ ॥
तड़फड़ाते ध्वजी पर क्रुद्ध दंष्ट्रि आ गड़े ।
चीखती घृणा का घोष धड़े से दो उखाड़ ॥
देही देही दग्ध व्रण मनुजता रक्तसार ।
नाड़ियों से लिपटे हुए जीर्ण शीर्ण हाड़ ॥
भग्न होके यत्र तत्र भाग उठी भगदड़े |
भड़काके भड़ भड़ाके खड़ा चिता का भाड़ ॥
खड़ खड़ाती खड्ग धार से चिंगारियां झड़े ।
तुंड दंड व्यूह बढ़े , मंडलकों को फाड़ ॥
हृदय का एक प्रांत था सौम्य शील शांत ।
लगा कंठ फड़फड़ाते नीड़ का एक निवाड़ ॥
No comments:
Post a Comment