Monday, June 16, 2025

----- || राग-रंग 41 || -----,

 तोरी कुंज गली बिनसाए रे, सम्हारो रे साँवरिआ..... 

सम्हारो रे साँवरिआ रखधारो रे साँवरिआ.....


गोरखपुर ते आया जोगी गोरख वैकें धँधे,

रँग भवन करे रँगरलिआ, पड़ माया के फँदे....


पीले पँजे से डर दिखलाए रे सम्हारो रे साँवरिआ... ..

राग रंग मे डुबकी लगाए,तन बैरागी चैला । 
मल मल साबुन तन उजियारा मन मटियारा मैला....

हढ धर्मि का जोग लगाए वो सम्हारो रे साँवरिआ .....


कपट भेष भर रे नगर फिरे वह ढोंगी पाखंडी,
लाज वाज सिर धरे टोकरी,बैठा बेचे मंडी.....

मानत ना वो कोई उपाए रे मनवारो रे साँवरिआ.....

गली गली जोगी फिरे चाहे जो रख लेय | 
ये सेवक ताहि के जो मोल कहे सो देय || 

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