दीप सिखा प्रजरत बरी, द्युति करत घन रात |
जौँ अँधिआरि सयन करी जागे प्रात प्रभात ||
:-- सघन निशीथ को प्रदीप्त करते प्रज्वलित दीप की शिखा को समाप्त होते देख जैसे ही अन्धकार शयनित हुवा वैसे ही प्रात संग प्रभात काल जागृत हो उठे......
सरन सरन बखेर चली दिपित किरन चहुँ ओर |
सोम सुनेरि सूर प्रभा छाइ छितिज के छोर ||
: -- शरणियों के चातुर्य कोणों में दीप्त किरण विकिरित करते सौम्य स्वर्णिम सूर्य प्रभा क्षितिज के छोर छोर पर व्याप्त हो गई |
ले अरुन की अरुनाई सौंधि सौगंधी धूर |
नत नयन नव यौवन के सीस धरे सिंदूर ||
:-- सूर्य के तेजस्व की लालिमा लिए सुरभित सौगंध्यित धूलिका अवनत नयन नव यौवन के सैंदूर्य स्वरूप सिरोधार्य हुई.....
मनमोहन के मंदिरे मँजीरु शंख अपूर |
मंद मधुर सुर ताल दे रँग नूपुर सौं रूर ||
रँग = वादन, सौं रुर = संग सुशोभित
जल तरंग की संगती बाज रहे सौ तूर |
सुर थाप सौं राग रहे मद्धम ढोल सुदूर ||
पुष्कर पुष्कर भए पुष्करी बिकसे प्रेम पराग |
भौंरत भरमत भाँवरी भर अंतर अनुराग ||
:--पुष्कर = सरोवर, पुष्करी = कमलों से युक्त, भौरत भरमत भौंरी = भ्रमण करती भ्रमित भ्र्मरी, अंतर=अंतस्य
भाव विभोर ह्रदय करे यह पावस की भोर |
परन पंथ पर पँख पसारे निरत मगन बन मोर ||
पावस = वर्षा,, परन पंथ = पर्ण आच्छादित पंथ
झनक झनक जस झँकारें झाँझरि के रमझोर |
झर झर करती निरझरी लेवे तस चित चोर ||
निर्झरी = झरना,रमझोर =घुंघरू
कुसुम कलित कल कुस थली, करषत कुञ्ज कुटीर |
सुरभि सैल के सिस झरे झर झर नीरज नीर ||
:-- कौसुम से सुसज्जित सुन्दर ग्रास की स्थली पर लताओं से आच्छादित आकर्षक कुञ्ज कुटीर
सुरभि शैल =मनोरम पहाड़ी नीरज नीर = जल मुक्ता
डाल डाल पर डारि के झूलनिआ की डोर |
बरखा रानी झूरती सावन को झकझोर ||
प्रेम करन को फूल दे बाँध प्रीत के केस |
गोद बैठाए लए गया रे बाबुल निज देस ||
करन फूल =कर्णफूल
बूंद बून्द घन बरस के गाए बिरह का राग |
सात सुर में प्रियतम को, छेड़ रहा अनुराग ||
पहला सावन दे रहा पहला ये संदेस |
प्रीति बिनु इन नैनन में नींद नहीं लवलेस ||
प्रेयसी के तन मन में लेवे प्रीत हिलोर |
डोरी धरे पलकन की झौंरे प्रेम हिंडोर ||
दीप सिखा जर बरत सिराई, उजरावत सघन घन रात |
ज्यों अँधियारि सयन करि जाई, उठे जागे प्रात प्रभात ||
सरन सरन पै किरन बखेरे चलत चहुँ ओर
सोम सुनेरी सूरुज परभा छत छाई छितिज के छोर