----- || राग-देश || -----
बहुतेर बरस बसेरा करत एहि बिरानी आनि बसे |
बहुरि बसिआ परबसिआ भए भेस बानि बर बिलसे ||
बिलसत बहु बहु बहु बिरधावत बाहरी भाउ बिसुरे |
बार बहुरे बरस बहुरे बाहिरि देसि बरग न बहुरे ||
बासत बासत बसती बसाएउ बास बास बसबासिते |
बसिआवत ए बास थान बट बलइत बेलि बिकासिते ||
भगवन्मय जन भवन भवन भूरि भूरि भँडारू भरे |
भदरबान भव भूतिमान भारत देस अधीन करे ||
वर्षोंवर्ष वास करते हुवे ये परधर्मी समुदाय इस देश में वसते चले गए | तदनन्तर इस देश की वेशवाणि इसकी संस्कृति का अनुशरण कर ये पार्देशीय समुदाय देशीय समुदाय स्वरूप दृष्टिगत होने लगे | इस देश के अतिशय उपभोग से संवर्द्धित होते गए फिर तो इनके मनोमस्तिष्क से बाह्यभाव विस्मृत हो गया | दिन आए और लौट गए वर्ष आए और लौट गए किन्तु यह पार्देशीय समुदाय नहीं लौटा |
भारत के वासों में वसते वसते इसने उपनिवेश वसा लिए इन उपनिवेशों में निवास करते हुवे भारत खंड रूपी वटवृक्ष में बेल के सदृश्य वलयित होकर यह समुदाय परिपुष्ट होता गया | भगवद भक्ति में तन्मय जनों से युक्त प्रचुर भवभूतियों से भरपूर भवनों से युक्त इस भद्रवान व् संसार भर में ऐश्वर्यवान भारत देश को अपने अधीन कर लिया |
पार देसि ए पार गेहि पार धर्म अनुयाइ |
जन्मजात सुभाउ अहइँ पेखै पहुमि पराइ ||
भावार्थ : - अन्य देशों के भूखंड पर कुदृष्टि करना भारत से भिन्न खंड में व्युत्पन्न इन परधर्मी
देशान्तरों का जन्मजात स्वभाव है |
बहिर देस बसबासते बिहुरत निज बसबास |
भवाँभूमि ए ब्यापते करतब गए निज दास ||
बाह्य देशों में निवास करते हुवे इन्होने अपना गृह देश अपना देवस्थान त्याग दिया | साम्राज्यवादी मानसकिता लिए ये देशों को दास में परिणित करते विश्वभर की भूमियों में व्याप्त हो गए |
परबस ते होतब गयउ ए देस दिनोदिन दीन |
प्रभु राज माहि प्रभु बरग भए प्रभुता ते हीन ||
पराधीनता के श्राप से अभिशप्त यह देश दिनोंदिन दरिद्र होता चला गया | वर्तमान के प्रभुसत्ता संपन्न वैधानिक राज्य में स्वामी समुदाय स्वयं सम्प्रभुता से वंचित है |
देसि पीढ़ि पीठ पद दए रचे पीढ़ि की सीढ़ि |
हरत प्रभुता तापर चढ़ि जने पीढ़ि पर पीढ़ि ||
भावार्थ : - भारवासियों की पीठ पर अपने चरण-तल देते हुवे इन्होने पीढ़ियों की सीढियाँ निर्मित की और इस सीढ़ी पर आरोहित होकर भारत के आधिपत्य को अपने अधीन करते हुवे इन्होने वंश पर वंश उत्पन्न किए |
देशाचार बिचार सहुँ देसधरम अनुहार |
जाजाबरी निरबंसि ए गहे बंस गहबार ||
भावार्थ : - इस देश के आचार-विचार,आहार-विहार व् रीतिगत परम्पराओं का अनुशरण करते ये यायावर निर्वंशी वंशवाले होते चले गए |
मूरि सहित उपारी के भखे पराया रूख |
भखै सकल भव भूमि बरु मिटइ न भुइँ करि भूख ||
भावार्थ : - अन्य धर्मानुयायियों को ये मूल सहित उखाड़ कर निगलते जाते हैं | संसारभर की भूमि इनके द्वारा भक्षयित है तथापि भूमि से इनकी क्षुधा शांत ही नहीं होती |
बिनहि भूमि भरुबार भए भाजत बारहिबार |
तापर भारत बसि रहए भाग देय दए भार ||
भावार्थ : - भूमिरहित हुवे भी भारत का वारंवार विभाजन कर ये प्रभुसत्ता संपन्न वैधानिक राष्ट्रों के स्वामी हैं तथापि भारत के राजस्व पर भारभूत होते हुवे भारत में ही बसे हुवे हैं |
अब इन्हें और भूमि चाहिए
भाजत भार भूत गहे भारत बारहिबार ||
प्रभुताइ ते बिहीन भय होत भूमि भरुबार ||
भावार्थ : - और यह भारत देश एक प्रभुत्व संपन्न वैधानिक राष्ट्र का स्वामी होते हुवे भी स्वामित्व से वंचित है और वारंवार विभाजन के पश्चात भी अपने राजस्व पर विभाजितों का भार ग्रहण किए हुए है |
बहुतेर बरस बसेरा करत एहि बिरानी आनि बसे |
बहुरि बसिआ परबसिआ भए भेस बानि बर बिलसे ||
बिलसत बहु बहु बहु बिरधावत बाहरी भाउ बिसुरे |
बार बहुरे बरस बहुरे बाहिरि देसि बरग न बहुरे ||
बासत बासत बसती बसाएउ बास बास बसबासिते |
बसिआवत ए बास थान बट बलइत बेलि बिकासिते ||
भगवन्मय जन भवन भवन भूरि भूरि भँडारू भरे |
भदरबान भव भूतिमान भारत देस अधीन करे ||
वर्षोंवर्ष वास करते हुवे ये परधर्मी समुदाय इस देश में वसते चले गए | तदनन्तर इस देश की वेशवाणि इसकी संस्कृति का अनुशरण कर ये पार्देशीय समुदाय देशीय समुदाय स्वरूप दृष्टिगत होने लगे | इस देश के अतिशय उपभोग से संवर्द्धित होते गए फिर तो इनके मनोमस्तिष्क से बाह्यभाव विस्मृत हो गया | दिन आए और लौट गए वर्ष आए और लौट गए किन्तु यह पार्देशीय समुदाय नहीं लौटा |
भारत के वासों में वसते वसते इसने उपनिवेश वसा लिए इन उपनिवेशों में निवास करते हुवे भारत खंड रूपी वटवृक्ष में बेल के सदृश्य वलयित होकर यह समुदाय परिपुष्ट होता गया | भगवद भक्ति में तन्मय जनों से युक्त प्रचुर भवभूतियों से भरपूर भवनों से युक्त इस भद्रवान व् संसार भर में ऐश्वर्यवान भारत देश को अपने अधीन कर लिया |
पार देसि ए पार गेहि पार धर्म अनुयाइ |
जन्मजात सुभाउ अहइँ पेखै पहुमि पराइ ||
भावार्थ : - अन्य देशों के भूखंड पर कुदृष्टि करना भारत से भिन्न खंड में व्युत्पन्न इन परधर्मी
देशान्तरों का जन्मजात स्वभाव है |
बहिर देस बसबासते बिहुरत निज बसबास |
भवाँभूमि ए ब्यापते करतब गए निज दास ||
बाह्य देशों में निवास करते हुवे इन्होने अपना गृह देश अपना देवस्थान त्याग दिया | साम्राज्यवादी मानसकिता लिए ये देशों को दास में परिणित करते विश्वभर की भूमियों में व्याप्त हो गए |
परबस ते होतब गयउ ए देस दिनोदिन दीन |
प्रभु राज माहि प्रभु बरग भए प्रभुता ते हीन ||
पराधीनता के श्राप से अभिशप्त यह देश दिनोंदिन दरिद्र होता चला गया | वर्तमान के प्रभुसत्ता संपन्न वैधानिक राज्य में स्वामी समुदाय स्वयं सम्प्रभुता से वंचित है |
देसि पीढ़ि पीठ पद दए रचे पीढ़ि की सीढ़ि |
हरत प्रभुता तापर चढ़ि जने पीढ़ि पर पीढ़ि ||
भावार्थ : - भारवासियों की पीठ पर अपने चरण-तल देते हुवे इन्होने पीढ़ियों की सीढियाँ निर्मित की और इस सीढ़ी पर आरोहित होकर भारत के आधिपत्य को अपने अधीन करते हुवे इन्होने वंश पर वंश उत्पन्न किए |
देशाचार बिचार सहुँ देसधरम अनुहार |
जाजाबरी निरबंसि ए गहे बंस गहबार ||
भावार्थ : - इस देश के आचार-विचार,आहार-विहार व् रीतिगत परम्पराओं का अनुशरण करते ये यायावर निर्वंशी वंशवाले होते चले गए |
मूरि सहित उपारी के भखे पराया रूख |
भखै सकल भव भूमि बरु मिटइ न भुइँ करि भूख ||
भावार्थ : - अन्य धर्मानुयायियों को ये मूल सहित उखाड़ कर निगलते जाते हैं | संसारभर की भूमि इनके द्वारा भक्षयित है तथापि भूमि से इनकी क्षुधा शांत ही नहीं होती |
बिनहि भूमि भरुबार भए भाजत बारहिबार |
तापर भारत बसि रहए भाग देय दए भार ||
भावार्थ : - भूमिरहित हुवे भी भारत का वारंवार विभाजन कर ये प्रभुसत्ता संपन्न वैधानिक राष्ट्रों के स्वामी हैं तथापि भारत के राजस्व पर भारभूत होते हुवे भारत में ही बसे हुवे हैं |
अब इन्हें और भूमि चाहिए
भाजत भार भूत गहे भारत बारहिबार ||
प्रभुताइ ते बिहीन भय होत भूमि भरुबार ||
भावार्थ : - और यह भारत देश एक प्रभुत्व संपन्न वैधानिक राष्ट्र का स्वामी होते हुवे भी स्वामित्व से वंचित है और वारंवार विभाजन के पश्चात भी अपने राजस्व पर विभाजितों का भार ग्रहण किए हुए है |
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