Monday, December 10, 2018

----- || राग-रंग १८ | -----

----- || राग -देश || ----- धीरोदात्त धनधानदाती धर्म धुरी धारिनी || ए धर्माचरनि धरनि धृतात्मावतार कर धामिनी | धनुर्धर धामान्तर धर्मि ध्वंसत धर्मातिक्रमन करे | हे धर्माधिकरनिक ध्यानत ए धर्माश्रित सेतु बरे || धृष्ट मानि धीसचिउ धरता धर्म संघ धर्म तजे | धींग धरम ध्वज धंधक धोरी धूर्त चरित धारत धजे || हे धारा सभा धर्मांधन्तरि धर्मि धर्म संग करे | धरम पीर कृत धीरवान भृत धर्मिनि धक् धड़क धरे || देस भूमि न होइ रे बहुरि बहुरि खनखण्ड | धर्माधिकरन न त तोहि देस देहि धिग्दंड || भावार्थ : - आत्मश्लाघा से रहित, धन धान्य प्रदान करने वाली, धर्म की धुरी को धारण कर धर्म का आचरण करने वाली यह धरती धृतात्मा वाले विष्णु के अवतार श्री राम चंद्र की धरती है | भारत देश में प्रादुर्भूत समुदायों से भिन्न एक धार्मिक समुदाय द्वारा धनुर्धारी श्रीरामचन्द्र जी के इस धाम का विध्वंश कर न्याय का अतिक्रमण किया गया | धर्माधर्म का निर्णय करने वाले हे न्यायाधिकरणिक ! आप यह ध्यान करते हुवे न्याय सम्मत मर्यादा का वरण करें | उद्दंड नेतृत्व को धारण करने वाले धर्म संघों ने तो धर्म ही त्याग दिया है वह तो धींगाधींगी करने वाले, धर्म की झूठी ध्वजा फहराने वाले, कपट धंधों का भार ढोने वाले, धूर्तों के चरित्र से शोभित हैं | हे व्यवस्थापिका ! दूसरे धर्म के प्रति द्वेष का भाव रखने वाले वह भिन्न समुदाय केवल धर्म का ढोंग करने में लगे हुवे हैं | न्याय में निष्ठा रखने वाली धार्मिक व्यक्तियों की मंडली को न्याय के उल्लंघन होने की भयपूरित आशंका है | भावार्थ : - एतएव हे धर्माधिकरण ! इस देश की भूमि अथवा उसका कोई खंड वारंवार खंडित न हो यदि हुवा तो आपको यह देश धिक्कारों से दण्डित करेगा |


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