Friday, December 7, 2018

----- || राग-रंग १७ | -----

                    ----- || राग-रंग | -----

निमूँद निमिष निसि नींद निबेरत नैनन निरंजनाए रे |
निरखत नूतन नभस निकेतन नव नील बसन दसनाए रे ||
निरखत नग मूर्धन्य निभरित निभ नभो केतन निकरते |
निकसे नंदन नंदन नवल नवीन नील नलिन नमन करते ||

नत मस्तक नदि निर्झरि निरंतर नीरज नूपुर निर्झरते  |
नेवारी नख नखत नाथ नव  नव निर्हारी नीहारि भरती  ||
निगदत निगमगान नगर नरदेउ नारी नर निर्माल धरे |
नीराजत नंदलाल नखाल नंदि  तुरज निह्नाद करे ||

भावार्थ : - मूंदी पलकों से निद्रा को त्याग कर निशा के नेत्र काजल/माया से रहित हुवे |  नील वर्ण  के नवीन वस्त्रों को धारण किए आकाशगृह नव नूतन दर्शित हो रहा है | पर्वत की चोटियों में छिपे प्रखर प्रकाश वाले सूर्यदेव उदयित हो रहे हैं | वे नंदन-नंदन नवल नवीन नील नलिन उन्हें नमन करते निष्कासित हो रहे हैं |

नदी झरने भी उनके सम्मुख नतमस्तक हैंउनसे निरंतर  मुक्तामय नूपुर  झर रहें हैं | नक्षत्रों एवं नक्षत्रानाथ चन्द्रमा का निवारण वह ( नभ को) सुगंध प्रस्तारित करने वाली निहारिकाओं परिपूरित कर रहे हैं | नगर विप्र निगमागान का आख्यान कर रहे हैं ,और नर नारी निर्माल्य लिए नंदकिशोर भगवान श्रीकृष्ण की पूजार्चना कर रहे हैं तो शंख व् नन्दितुर्य मंगल ध्वनि कर रहे हैं |


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