Thursday, June 21, 2018

----- || राग-रंग ३ | -----,


----- || राग -मियाँ की तोड़ी || -----

हे जग बंदन अब अवतरौ तुम्ह..,
कलि काल कर कलुष हरौ तुम्ह..,

हिय संताप नैन भर बारी | धेनु रूप धर धरति पुकारी ||
तरस प्रभु दृग दरस परौ तुम्ह..,

तलफत भू कलपत बहु रोई | तुम्ह सोंहि प्रभु अबर न कोई ||
मोर हरिदय चरन धरौ तुम्ह..,

बोहि बोह सिरु पाप अगाधा | गहबर पंथ चरन गहि बाधा ||
पातक भारु हरन करौ तुम्ह..,

गिरि सरि सागर हरुबर मोही | भा गरुबर एक धर्म बिद्रोही ||
प्रगस सगुन सरूप धरौ तुम्ह..,

दुःख दारुन कर रैन मँझारे  | धरै दीप सम नैन दुआरे || 
दिनकर के रूप अभरौ तुम्ह.., 

चारिहुँ ओर घोर अँधियारा | निद्रालस बस भयो संसारा || 
करत भोर अँजोर भरौ तुम्ह.., 

लोग भयऊ मोर बिपरीता | अपकरनि ते भयहु भयभीता ||
भवहि केरि बिभूति बरौ तुम्ह.....

भावार्थ : - हे जगत वंदनीय ईश्वर अब आप अवतार लो | और अवतार लेकर कलियुग की कलुषता से मुक्त करो || ह्रदय में संताप और नेत्रों में जल भरकर  गाय रूप धारण की हुई  धरती ने आर्त होकर भगवान को पुकार कर कहा -- हे भगवन ! अब दया कर इन अश्रुपूरित नेत्रों को अपना दर्शन दो || तड़पती हुवे रूदन के द्वारा  अपनी अंतर वेदना को व्यक्त करती हुई भूमि ने फिर कहा हे प्रभु! आपके अतिरिक्त इस संसार में मरा कोई नहीं है मेरे ह्रदय में अपने चरण धरो | मेरे शीश पर अगाध पाप के गठरी का बोझ है मेरा भ्रमण पंथ दुर्गम है उसपर मेरे चरण आपदा स्वरूप बाधाओं से बंधे हैं, प्रभु! अब आप इन पापों का हरण करो | पर्वत, सरिताएं और सागर भी मेरे लिए भारहीन हैं किन्तु एक धर्म विद्रोही का भार मुझे अतिशय भारी प्रतीत होने लगा है | हे अन्तर्यामी ! अब प्रकट होओ और सगुण स्वरूप धारण करो | दुःख व् दरिद्रता की अर्ध रात्रि में द्वार पर धरे दीपक के समान ये नयन प्रतीक्षारत है  | हे प्रभु ! अब आप दिनकांत के रूप का आभरण करो | चारों और घोर अन्धकार व्याप्त है संसार निद्रा व् आलस्य के वशीभूत हो गया है हे भगवन ! अब भोर कर अपनी दीप्ती से जगत में उजाला भर दो | ये सांसारिक लोग मेरे विपरीत हो चले  है इनके कुकर्मों सेस्वयं भय भी भयभीत है अब इस लोक की वैभव विभूति को आप ही वरण करो हे राम अवतरण करो.....

1 comment:

  1. एक अच्छी और प्रभु के लिए सच्ची प्रार्थना .
    सुप्रभात
    क्षेत्रपाल
    22.06.18 , 04.46 प्रात:

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