रथ रोहत एक दिवस बहोरे । अटपट संकट साधन जोरे।
जूते हरि गण गन सरुप हरासे । उछ्बासन के किरनन कासे।।
हत चेतन जीवन प्रभ लाखे । अवसेश सूत लाखन राखे ॥
बाहिक चरन हराहरी हारे । बाहक बाहन बहनु हँकारे ॥
कहि रथी हथाह्थ रथ चारे । भरी भोर बधु पट पैसारें ॥
तँह कुटुंबिक चरन संचारे । तीर तरंगन द्रुत गति धारे ॥
सकल नगरी गह निद्रा सोई । कार काल कोलाहल होई ॥
मंद कांति कर गामिनि छाए । कर कलरव जल कुमुद कुमलाए ॥
आकर प्रभा कर बरनै, बरनन अरन अलिंद ।
दहरि दुआरि धर चरनै, अवतर अररि रविंद ॥
बुधवार, १ ७ जुलाई, २ ० १ ३
नग ऊपर तरि धूँधर धूने । नगरि नदी नद नागर सूने ।।
अनसु जाल घर अम्बर भारी । कछुक उजयारि कछू अँधियारी ॥
हरि हरि कर हिरनै संकासे । नभ मूँदरि हीरक हरि कासे ॥
श्री सुम कलि अलि बल्लभ लासे । नीर नील नौ नलिन निकासे ॥
कारित कलबर नभस नभोचर । जोगत भगत जगत हरि मंदर ॥
चौपथ रथ सथ रुदथ चिघारे । संचारत चर चरनन चारे ॥
चारिन रथ पौरक पुर पारे । तँह वधु के गृह सनमुख ठारे॥
थिरकौंहत रत रथ पद थाई । तरी थारी पर दुइ परछाई ॥
भेद भेद भर हरिदै गाढ़े । छाइ चरन दुआरि पुर बाढ़े ॥
पाट कपाट कुंडी कर , कस करकस खटकाए ।
धवनि तरंग धर घर भर, कलबर कर गुंजाए ॥
गुरूवार, १ ८ जुलाई, २ ० १ ३
इत बहियर कहुँ गहियर खोई । निद्रा मगन भै सयनै सोई ॥
कंपित हिय गत पिय सपनाई । मुँदे नयन दर्पन छबि छाई॥
सह सुति सूना बधु भुज पासे । सत गति साँसे कभु उछबासे ॥
औचट खट खट के खट्कारे । गहन कूलाहल खटका धारे ॥
ततपल अँखि रखि अंचल खोरे । बहियर गोचर गोलक डोरे।।
धीरहि धीरै धिय थपकाई । उपोत पोत परत उसराई ॥
आलस भंजत बसन सँभारे । चरे चरन पुर भवन दुवारे ॥
अरबर कर धर पटर उघारे । अर्रर अररी कंठन कारे ॥
बधु दृग दिरिस का दरसे, आगत जागत सूत ।
मंद कांति मुख वधु सों, ठाड़े दहरि दू दूत ॥
शुक्रवार, १ ९ जुलाई, २ ० १ ३
दरस तिन्ह बधू ते बखताई । छे वादन पर अचरज भाई ॥
वधु मतिहि मत तरंगन छाई । एक आवन पर तुर एक जाई ॥
एक दूतक रहि बार भौजाई । रहि बहिनइ दूत बियाई ॥
कहि दोनउ दुआरि पर ठाढ़े । चलौ तुरत तुम संग हमारे ॥
बरन बरन बधु बदन सहारे। विरल वानी वचन सम्हारे ॥
पद रद छादन हहरित हारे । हत चित चेतन नयन निहारे ॥
कहत तिन्ह तइ बिस्मइ घेरे। तुम दोनौ अरु एहि भल बेरे ॥
पूछी वधु सत साहस जोई । कहु को कँहु होनिहि होई ॥
कहि दोनउ धर मुख मलिनाई । बेर भला ना भई भलाई ॥
अरन मुकुति दुःख तार पिरोई । अरु कहि प्रिय सन अनभल होई ॥
भै ते दुर्घटना ग्रसित, किए औषधि घर बास ।
कहत ए कंठी कल कसित, लिए दोनउ उछबास ॥
शनिवार, २ ० जुलाई, २ ० १ ३
देहि पर जस तस बसित बसाए । सयनित सुता कर कंठ लगाए ॥
अकुल बियाकुल हहरत छाँती । गच्छइ बधु जेहिं तेहिं भाँती ॥
मन ही मन भगवान सुरताई । सुमिरन करत चरण सिरु नाई ॥
मति गति मत गत प्रिय बय काईं। प्रबसहिं एक निर्गम तहँ ताईं॥
आगिन आगिन दूतक गवनै । पाछिन बधु पद चरित लहनै ॥
बैसत बाहनु दिए गति बाही । पय सैम पंथ तिरत अवगाही ॥
नीर नयनन पट तीर तरुबर । बधु तिन्ह बिलोकति बहु कातर ॥
कर पद पत कर तन तरु कोटर । बहि बहि सीतर काँपइ थर थर॥
अरत गरत दरत दोलत, पंथ परत किए पार ।
सरित सेतु बंध उतरत, चिंतन चढ़े पहार ॥
उतरि भावज बहिनहि सथ, सुरतात चित हत हानि ।
देही छति छत कर गिनत, भए केतक परिमान ॥
रविवार, २ १ जुलाई, २ ० १ ३
मति मंथन किए बिगलित केसे । जुगति जाल दिए बिखरित भेसे ।
विकलित बहस सम्हरित लेसे । औषधि घर बधु चरन प्रबेसे ॥
प्रबिसत चास अस चहुँत बिलोके । जनु मनु अगवनु को जम लोके ॥
रमत रहहिं तहँ प्रमथित लोगे । परत पाप जिमि नारक भोगे ॥
अबुध बधू रय भय ताहू । कानी धारि कर कंठ प्रबाहू ॥
प्रबुधित ततछिनु बहिनइ भासे । बसित प्रबासन पिया प्रभासे ॥
सास ससुर साथ सह ससुराई । सकल प्रियजन पिय रहि घिराईं ॥
तहँ दी न कोउ वैद दिखाई । रोगित जोगित आवत जाईं ॥
अचरा कर लिन्हें, पथ पद चिन्हें, हियरा धीरजु राखे ।
जब अंतर किन्हें दरसन दिन्हें, साजन सनमुख आखेँ ।।
अलि अलक अकासे, मुकुति अभासे, लाखात लोचन पाखी ।
बरखे बरखा से, भीजत साँसे, भै बरन धुनी भाखे ॥
प्रिय मलिन प्रभा मुख, दीन दसा दुःख, टसक कसक कहि कथनै ।
देहि छति छत पाए, बसन मलियाए, सयनइ रहि सों सयनै ॥
गह घंबर पीरा घन गंभीरा बाह जी कम्पन करै /
कभु बिकल अकुलाए, नैन उघराए, कबहुँ झपक मूँद धरै //
भै जीउ जब होन बिबस, होनइ सब करि हारि /
होहहि सोइ किंचित है, एही धारनमन धारि//
सोमवार, २ २ जुलाई, २०१३
करुना कंदन मन प्रस्फोरे / साखी मति गति पत पत कोरे //
फुरित संतोष सुमनस तोरे / निज अंतर बधु करत कठोरे //
बार बधूटी चाष झरोखे / हतगत कनखत परख बिलोके //
बलि बल्कल बल चोट चपेटे / भयउ भेंट पिय लेटहि लेटे //
लाम चाम छद छालि छिलाई / चमरस चस चसकर उघराई //
ऊरू फलक सिध संधि अंगे / ते अस्थि भइ दु पाट प्रभंगे //
पीर बहुस कर धीर न धारे / कहि प्रियतम हम राम सहारे //
भए हत भागित हहरत हारे / हाय करत प्रभु भगत पुकारे //
कहुँ हत कहुँक छत छित्रित, लाहत रुधिर सुरंग /
कहुँ पीरित देहि भितरित, भयउ पद अस्थि भंग //
मंगलवार, २३ जुलाई, २ ० १ ३
माघ चढ़े पद पख अँधियारे / गह पिय दुर्गत घटना कारे //
सीत सरन चरि सरयू सर सर / पीर लहत मुख कांति पट हर //
ऐसेउ बयस बिधे प्रात सिधाए / पिय दुःख धरत बहु बखत सिराए //
रोगी जोगत पंथ निहारे / बेर भइ न को बैद पधारे //
दुसर पहर सोन जब अगुवाईं / सूझत रहि न अरु को उपाई //
अगीत पछीत जन समुदाई / बिदित बैद दिए बदन दिखाई //
धौला गिरी सम कापर धौरे / तापर मनिधर सर सर डोरे //
कहत प्रभु जिन्ह जन जन मानस / रहहि दानउ तेहि मन अंतस //
हतगत अधोपत कसकत, बोले अंतर हाड़ /
निरखत बैद उपरोपर, बाढ़े अगवनु बाड़ //
बुधवार, २ ४ जुलाई, २ ० १ ३
जोगत रहहि पिय पंच परिजन / लागि बैद पहि मेल मिलावन //
लहि नहि रहि घटना के बिबरन / बधू अजहुँत तेहि कर कारन //
परिजन उर धर आरत भारी / करत परस्पर बूझ बिचारी //
गवनु सकल जन बेदज पाहीं / तै परतस अस बैद बताहीं //
ऊरु फलक जे दुटूक धरहीं / सल्यक्रिया सन तेहि सुधरहीं //
दै दंड ते संधि संधाही / ता पर एक पटिका बंधाही //
सेष सकल जे भै तन घाते / सनै सनै ते सुधरहि साथे //
तुरत तुरग तुल दै निर्देसे / गत जाने को अंतर देसे //
बैद बचन सुन वदनन लाखे / रहहि पंच पै भयउ अबाके //
अस श्रवनत बधु लइ उछ्बासे / रोगि अरत पिय हहरइ साँसे //
करत पिया चिंतन मनन, रोग सयन लह रेष /
गए कर कर्मना कर्मन, ता पर काइ क्लेष //
गुरूवार, २ ५ जुलाई, २ ० १ ३
उत बैदक हहरत हलवाहीं / कहत हरुअन महहीं भलाई //
इत प्रिय परिजन भए हरहाई / सकल बदन हरदी छाई //
भँवरी मति गति कवनइ किन्हें / तब पुर जन पहि चरनन चिन्हें //
बूझत दरसत तब बुधवंते / सबहि सुधित दै बर मत मंते //
कार अलस जिनके मन माया / तिनके कर्तन काल समाया //
सल्य कार जे भए अनिबारे / कोउ औरन नगर चिन्हारें //
गवने एक बुध बैदक पाहीं/ तासु सकल ब्यथा परचाहीं //
परख दसा बहु सोच कहिन्हें / मति मंथत ते मंत्रन दिन्हें //
ऊरु फलक भय दूई टूके / सल्योपचार ते नहि चूकें //
नहि टी चारण होहि कठिनाई/ एक पद लघु एक बड़न लहाई //
तब ते बिदित बैद राज, सुझाइ ऐहि बिचार/
रोगि जोगि साज समाज, जाहू लेइ बहार //
बाहन साधन जोरि कै, गवनउ नगर बिलास /
तहाँ रहहि एक बैद बिरध, नाम ते धीर दास //
शुक्रवार, २६ जुलाई, २० १ ३
ततपर परिजन बेर न कारीं / जुगति जोग बाहन पद चारी //
पीछ पीठ पुर पिय पौढ़ाईं / यतन जतन बहु चरण मढ़ाईं //
बाल कनिक कंधन कनियाँई / बधु प्रियतम भुज पास बिसाई //
भसुर सहित बधु के बर भाई / बैसे सह सम सहस सहाईं //
तहवाँ पर पुर करैं पयाने / रह्जाँ बैद बिरध सयाने //
गरक बरे बाहन रलि रोरे / हड़क पदक हिदोलक दोरे //
पंजर सह जब हाड हिलोरे / प्रियतम हदकत पुनि कर जोरे //
दन्त बसन बधु बदन दसाई / बहुस बेर मह हँसि मुख छाई //
हदक पदक पर कुँअर हड़काए / तुम्हरे पोषन हाड़ गवाएँ //
पुरुख कि जान प्रसव के पीरा / नारि न जान पुरुख गंभीरा //
सुहास बदन सजल नयन, अंतर निलय अधीर /
करी याचन बधु मनहि मन, पावन प्रियतम पीर //
शनिवार, २ ७ जुलाई, २ ० १ ३
चरन पीर परि बदन स्यामा / मन चिंतन धन कारज कामा //
अधर अधस पिय धरे अधीरे / लहि बहि बाहनि धीरहि धीरे //
जोग समउ बधू पिय मुख देखे / बरन बचन धन अधरं लेखे //
का भइ कस भए कहु समुझाईं / घटना बिबरन पूछत पाईं //
ताप सहत पिय साहस जोरे / रद छादन तनि बरन बटोरे //
जब प्रियतम ध्यान पर चाढ़े / श्रवनत बधुचित चित्बत ठाढ़े //
पीठ पास गत चित्र अनुरेखे / कहत कथन पिय करम सुरेखे //
दिसा सीध पिय दसा बिपरिते / दीठ मूँद किए अधर मुखरिते //
बाँधतबचन प्राग कथन, अरनन बरनन सार /
बोले प्रानधन पत पुनि, प्रान पत्नी उचार //
रविवार, २ ८ जुलाई, २ ० १ ३
प्रातह थापन थरि एक बारे / मम दिन चरिआ चरन अचारे //
गवनउँ जनपत भीत बसेरे / जोगत निरखत कारज केरे //
बहुरि नभास चार बहु कलरउ कर/ बहुरि हलिक हल हलिकर हरबर//
कुंजन कोइल कलिक कुलाहल / हरिअरि भू भर लयनै हलचल //
अंबर डंबर जे जुग सारे // ते कर केर सकेर सकारे //
किरन कासि कर किए एक कोरे / बुट जुट संपुट बाजत डोरे //
लाखी गवाखि सांझ दुआरी / मंद चारि दरपन कर धारी //
सिस सस नैनन काजर डारे / रैनी बेनी माँग सँवारे //
मैं सथ एक अरु मोर सहाई / निज निवासन आन हरुहाईं //
सकल दिसा दरसन दृग अम्बरि / दिवस मुद्रा भै हमहु हराहरि //
करत कहुँ रयनी भोजन, सकल सँजोइ जोए /
लिये दोइ चरन बाहिनी, बाहक बाहिन दोए //
सोमवार, २ ९ जुलाई, २ ० १ ३
तबहि एक बासि देइ उदंते / मंत्र मूल मंतुक लघु मंते //
देवन मंत्रन मंच पधाईं / ते चहि श्रवनन ते तहँ जाईं //
मैं अरु सहचर संग बिचारे / श्रवन मंत्र मंचन पुर चारे //
तेहि कारन दु होरक होरे / कारत कारत थोरहि थोरे //
तहँ ते निकसत भै तानी बेरे / तहँ लग रैनी लिए घन घेरे //
तत पर लै बहि चरे दुनोई / सरनि चरनि चर सर सर होई //
अहा बहिक बहु बहि हहराई / भइ सीतर सरदा के नाईं //
बहुरि चरन अति द्रुत गति धारे/ पंथ गहत करि पार पहारे //
गोचर नयन बिपिन गहन, रूप घन कुंतल काल /
रचना रचित सरिस सरन, बाहन कासित लाल //
मंगलवार, ३ ० जुलाई, २ ० १ ३
केस बिटप बार बन घन घोरे/ जहँ जिउ जंतु जस कीट डोरे //
द्रुम कंटिक कहुँ बट बर षंडे / साख हिरन जिमी कीटक अंडे //
जूँ जून बलयित बहि पद रोले / करत कुलाहल कलबल बोले //
तों तों धुरियत दूर नहाके / लख घर बीथीं धूरै लाखे //
उठइ धूरि धुर ऊपर छाई / चमक चंदु मल मुख धुँधराई //
बही अस जस चंद्रिकाभिसारी / मिलन बिकल जिमि पिया दुआरी //
औचट बिचरत घन बन देसे / निकस आए एक दीर्घ केसे //
पग धारत पथ कारत पारे / आगत सन्मुख सोइ हमारे //
एक तौ बहि बहु गति गहराई / ता पर रयनइ गहनइ छाई //
दरसत मम दृग ते अस हाई / सहरत हहरत चित हरवाई //
फेर लगे बहु डगमगे, कभु दाहिन कभु बाम /
बहनु गति नियंतन लगे, गत कर गिरे धराम //
बुधवार, ३१ जुलाई, २ ० १ ३
धरा साइ भए अस मम गाते / चढ़े कोउ जिमि साख निपाते //
गिरे बाहनु सह ऊपर मोरे / हत कारत मम पंजर तोरे //
दसा दीनतस दिसि अँधियारे/ सूल कुलिस पट अँगवनहारे //
तापर घन बन तम अधिकाई / अस दरस दृग भयउ असहाई //
लसित तनिक हत मोर सहाई / तेहि बहि पाछु पटक धराई //
लाहत आहत पतन अधारा / सूझि न मति का करिअ बिचारा //
सहचर मति अस संकट छाई / मो परिहरु न बनत कहुँ जाई //
परे परे मंझन पथ ठौरे / दोउ नयन को पथिक अगौरे //
पथ निर्जन जामिक घन घोरे / भयजनि जंतु बन रहि न थोरे //
ते डरपत भै चित भयभीते / छत पत हतप्रद भुज बल रीते //
जोगत पथिक पथ निहार, फेर लगे दउ छोर /
दरसन दैं दु चंदु चार, कोउ अहोर न होर //
जूते हरि गण गन सरुप हरासे । उछ्बासन के किरनन कासे।।
हत चेतन जीवन प्रभ लाखे । अवसेश सूत लाखन राखे ॥
बाहिक चरन हराहरी हारे । बाहक बाहन बहनु हँकारे ॥
कहि रथी हथाह्थ रथ चारे । भरी भोर बधु पट पैसारें ॥
तँह कुटुंबिक चरन संचारे । तीर तरंगन द्रुत गति धारे ॥
सकल नगरी गह निद्रा सोई । कार काल कोलाहल होई ॥
मंद कांति कर गामिनि छाए । कर कलरव जल कुमुद कुमलाए ॥
आकर प्रभा कर बरनै, बरनन अरन अलिंद ।
दहरि दुआरि धर चरनै, अवतर अररि रविंद ॥
बुधवार, १ ७ जुलाई, २ ० १ ३
नग ऊपर तरि धूँधर धूने । नगरि नदी नद नागर सूने ।।
अनसु जाल घर अम्बर भारी । कछुक उजयारि कछू अँधियारी ॥
हरि हरि कर हिरनै संकासे । नभ मूँदरि हीरक हरि कासे ॥
श्री सुम कलि अलि बल्लभ लासे । नीर नील नौ नलिन निकासे ॥
कारित कलबर नभस नभोचर । जोगत भगत जगत हरि मंदर ॥
चौपथ रथ सथ रुदथ चिघारे । संचारत चर चरनन चारे ॥
चारिन रथ पौरक पुर पारे । तँह वधु के गृह सनमुख ठारे॥
थिरकौंहत रत रथ पद थाई । तरी थारी पर दुइ परछाई ॥
भेद भेद भर हरिदै गाढ़े । छाइ चरन दुआरि पुर बाढ़े ॥
पाट कपाट कुंडी कर , कस करकस खटकाए ।
धवनि तरंग धर घर भर, कलबर कर गुंजाए ॥
गुरूवार, १ ८ जुलाई, २ ० १ ३
इत बहियर कहुँ गहियर खोई । निद्रा मगन भै सयनै सोई ॥
कंपित हिय गत पिय सपनाई । मुँदे नयन दर्पन छबि छाई॥
सह सुति सूना बधु भुज पासे । सत गति साँसे कभु उछबासे ॥
औचट खट खट के खट्कारे । गहन कूलाहल खटका धारे ॥
ततपल अँखि रखि अंचल खोरे । बहियर गोचर गोलक डोरे।।
धीरहि धीरै धिय थपकाई । उपोत पोत परत उसराई ॥
आलस भंजत बसन सँभारे । चरे चरन पुर भवन दुवारे ॥
अरबर कर धर पटर उघारे । अर्रर अररी कंठन कारे ॥
बधु दृग दिरिस का दरसे, आगत जागत सूत ।
मंद कांति मुख वधु सों, ठाड़े दहरि दू दूत ॥
शुक्रवार, १ ९ जुलाई, २ ० १ ३
दरस तिन्ह बधू ते बखताई । छे वादन पर अचरज भाई ॥
वधु मतिहि मत तरंगन छाई । एक आवन पर तुर एक जाई ॥
एक दूतक रहि बार भौजाई । रहि बहिनइ दूत बियाई ॥
कहि दोनउ दुआरि पर ठाढ़े । चलौ तुरत तुम संग हमारे ॥
बरन बरन बधु बदन सहारे। विरल वानी वचन सम्हारे ॥
पद रद छादन हहरित हारे । हत चित चेतन नयन निहारे ॥
कहत तिन्ह तइ बिस्मइ घेरे। तुम दोनौ अरु एहि भल बेरे ॥
पूछी वधु सत साहस जोई । कहु को कँहु होनिहि होई ॥
कहि दोनउ धर मुख मलिनाई । बेर भला ना भई भलाई ॥
अरन मुकुति दुःख तार पिरोई । अरु कहि प्रिय सन अनभल होई ॥
भै ते दुर्घटना ग्रसित, किए औषधि घर बास ।
कहत ए कंठी कल कसित, लिए दोनउ उछबास ॥
शनिवार, २ ० जुलाई, २ ० १ ३
देहि पर जस तस बसित बसाए । सयनित सुता कर कंठ लगाए ॥
अकुल बियाकुल हहरत छाँती । गच्छइ बधु जेहिं तेहिं भाँती ॥
मन ही मन भगवान सुरताई । सुमिरन करत चरण सिरु नाई ॥
मति गति मत गत प्रिय बय काईं। प्रबसहिं एक निर्गम तहँ ताईं॥
आगिन आगिन दूतक गवनै । पाछिन बधु पद चरित लहनै ॥
बैसत बाहनु दिए गति बाही । पय सैम पंथ तिरत अवगाही ॥
नीर नयनन पट तीर तरुबर । बधु तिन्ह बिलोकति बहु कातर ॥
कर पद पत कर तन तरु कोटर । बहि बहि सीतर काँपइ थर थर॥
अरत गरत दरत दोलत, पंथ परत किए पार ।
सरित सेतु बंध उतरत, चिंतन चढ़े पहार ॥
उतरि भावज बहिनहि सथ, सुरतात चित हत हानि ।
देही छति छत कर गिनत, भए केतक परिमान ॥
रविवार, २ १ जुलाई, २ ० १ ३
मति मंथन किए बिगलित केसे । जुगति जाल दिए बिखरित भेसे ।
विकलित बहस सम्हरित लेसे । औषधि घर बधु चरन प्रबेसे ॥
प्रबिसत चास अस चहुँत बिलोके । जनु मनु अगवनु को जम लोके ॥
रमत रहहिं तहँ प्रमथित लोगे । परत पाप जिमि नारक भोगे ॥
अबुध बधू रय भय ताहू । कानी धारि कर कंठ प्रबाहू ॥
प्रबुधित ततछिनु बहिनइ भासे । बसित प्रबासन पिया प्रभासे ॥
सास ससुर साथ सह ससुराई । सकल प्रियजन पिय रहि घिराईं ॥
तहँ दी न कोउ वैद दिखाई । रोगित जोगित आवत जाईं ॥
अचरा कर लिन्हें, पथ पद चिन्हें, हियरा धीरजु राखे ।
जब अंतर किन्हें दरसन दिन्हें, साजन सनमुख आखेँ ।।
अलि अलक अकासे, मुकुति अभासे, लाखात लोचन पाखी ।
बरखे बरखा से, भीजत साँसे, भै बरन धुनी भाखे ॥
प्रिय मलिन प्रभा मुख, दीन दसा दुःख, टसक कसक कहि कथनै ।
देहि छति छत पाए, बसन मलियाए, सयनइ रहि सों सयनै ॥
गह घंबर पीरा घन गंभीरा बाह जी कम्पन करै /
कभु बिकल अकुलाए, नैन उघराए, कबहुँ झपक मूँद धरै //
भै जीउ जब होन बिबस, होनइ सब करि हारि /
होहहि सोइ किंचित है, एही धारनमन धारि//
सोमवार, २ २ जुलाई, २०१३
करुना कंदन मन प्रस्फोरे / साखी मति गति पत पत कोरे //
फुरित संतोष सुमनस तोरे / निज अंतर बधु करत कठोरे //
बार बधूटी चाष झरोखे / हतगत कनखत परख बिलोके //
बलि बल्कल बल चोट चपेटे / भयउ भेंट पिय लेटहि लेटे //
लाम चाम छद छालि छिलाई / चमरस चस चसकर उघराई //
ऊरू फलक सिध संधि अंगे / ते अस्थि भइ दु पाट प्रभंगे //
पीर बहुस कर धीर न धारे / कहि प्रियतम हम राम सहारे //
भए हत भागित हहरत हारे / हाय करत प्रभु भगत पुकारे //
कहुँ हत कहुँक छत छित्रित, लाहत रुधिर सुरंग /
कहुँ पीरित देहि भितरित, भयउ पद अस्थि भंग //
मंगलवार, २३ जुलाई, २ ० १ ३
माघ चढ़े पद पख अँधियारे / गह पिय दुर्गत घटना कारे //
सीत सरन चरि सरयू सर सर / पीर लहत मुख कांति पट हर //
ऐसेउ बयस बिधे प्रात सिधाए / पिय दुःख धरत बहु बखत सिराए //
रोगी जोगत पंथ निहारे / बेर भइ न को बैद पधारे //
दुसर पहर सोन जब अगुवाईं / सूझत रहि न अरु को उपाई //
अगीत पछीत जन समुदाई / बिदित बैद दिए बदन दिखाई //
धौला गिरी सम कापर धौरे / तापर मनिधर सर सर डोरे //
कहत प्रभु जिन्ह जन जन मानस / रहहि दानउ तेहि मन अंतस //
हतगत अधोपत कसकत, बोले अंतर हाड़ /
निरखत बैद उपरोपर, बाढ़े अगवनु बाड़ //
बुधवार, २ ४ जुलाई, २ ० १ ३
जोगत रहहि पिय पंच परिजन / लागि बैद पहि मेल मिलावन //
लहि नहि रहि घटना के बिबरन / बधू अजहुँत तेहि कर कारन //
परिजन उर धर आरत भारी / करत परस्पर बूझ बिचारी //
गवनु सकल जन बेदज पाहीं / तै परतस अस बैद बताहीं //
ऊरु फलक जे दुटूक धरहीं / सल्यक्रिया सन तेहि सुधरहीं //
दै दंड ते संधि संधाही / ता पर एक पटिका बंधाही //
सेष सकल जे भै तन घाते / सनै सनै ते सुधरहि साथे //
तुरत तुरग तुल दै निर्देसे / गत जाने को अंतर देसे //
बैद बचन सुन वदनन लाखे / रहहि पंच पै भयउ अबाके //
अस श्रवनत बधु लइ उछ्बासे / रोगि अरत पिय हहरइ साँसे //
करत पिया चिंतन मनन, रोग सयन लह रेष /
गए कर कर्मना कर्मन, ता पर काइ क्लेष //
गुरूवार, २ ५ जुलाई, २ ० १ ३
उत बैदक हहरत हलवाहीं / कहत हरुअन महहीं भलाई //
इत प्रिय परिजन भए हरहाई / सकल बदन हरदी छाई //
भँवरी मति गति कवनइ किन्हें / तब पुर जन पहि चरनन चिन्हें //
बूझत दरसत तब बुधवंते / सबहि सुधित दै बर मत मंते //
कार अलस जिनके मन माया / तिनके कर्तन काल समाया //
सल्य कार जे भए अनिबारे / कोउ औरन नगर चिन्हारें //
गवने एक बुध बैदक पाहीं/ तासु सकल ब्यथा परचाहीं //
परख दसा बहु सोच कहिन्हें / मति मंथत ते मंत्रन दिन्हें //
ऊरु फलक भय दूई टूके / सल्योपचार ते नहि चूकें //
नहि टी चारण होहि कठिनाई/ एक पद लघु एक बड़न लहाई //
तब ते बिदित बैद राज, सुझाइ ऐहि बिचार/
रोगि जोगि साज समाज, जाहू लेइ बहार //
बाहन साधन जोरि कै, गवनउ नगर बिलास /
तहाँ रहहि एक बैद बिरध, नाम ते धीर दास //
शुक्रवार, २६ जुलाई, २० १ ३
ततपर परिजन बेर न कारीं / जुगति जोग बाहन पद चारी //
पीछ पीठ पुर पिय पौढ़ाईं / यतन जतन बहु चरण मढ़ाईं //
बाल कनिक कंधन कनियाँई / बधु प्रियतम भुज पास बिसाई //
भसुर सहित बधु के बर भाई / बैसे सह सम सहस सहाईं //
तहवाँ पर पुर करैं पयाने / रह्जाँ बैद बिरध सयाने //
गरक बरे बाहन रलि रोरे / हड़क पदक हिदोलक दोरे //
पंजर सह जब हाड हिलोरे / प्रियतम हदकत पुनि कर जोरे //
दन्त बसन बधु बदन दसाई / बहुस बेर मह हँसि मुख छाई //
हदक पदक पर कुँअर हड़काए / तुम्हरे पोषन हाड़ गवाएँ //
पुरुख कि जान प्रसव के पीरा / नारि न जान पुरुख गंभीरा //
सुहास बदन सजल नयन, अंतर निलय अधीर /
करी याचन बधु मनहि मन, पावन प्रियतम पीर //
शनिवार, २ ७ जुलाई, २ ० १ ३
चरन पीर परि बदन स्यामा / मन चिंतन धन कारज कामा //
अधर अधस पिय धरे अधीरे / लहि बहि बाहनि धीरहि धीरे //
जोग समउ बधू पिय मुख देखे / बरन बचन धन अधरं लेखे //
का भइ कस भए कहु समुझाईं / घटना बिबरन पूछत पाईं //
ताप सहत पिय साहस जोरे / रद छादन तनि बरन बटोरे //
जब प्रियतम ध्यान पर चाढ़े / श्रवनत बधुचित चित्बत ठाढ़े //
पीठ पास गत चित्र अनुरेखे / कहत कथन पिय करम सुरेखे //
दिसा सीध पिय दसा बिपरिते / दीठ मूँद किए अधर मुखरिते //
बाँधतबचन प्राग कथन, अरनन बरनन सार /
बोले प्रानधन पत पुनि, प्रान पत्नी उचार //
रविवार, २ ८ जुलाई, २ ० १ ३
प्रातह थापन थरि एक बारे / मम दिन चरिआ चरन अचारे //
गवनउँ जनपत भीत बसेरे / जोगत निरखत कारज केरे //
बहुरि नभास चार बहु कलरउ कर/ बहुरि हलिक हल हलिकर हरबर//
कुंजन कोइल कलिक कुलाहल / हरिअरि भू भर लयनै हलचल //
अंबर डंबर जे जुग सारे // ते कर केर सकेर सकारे //
किरन कासि कर किए एक कोरे / बुट जुट संपुट बाजत डोरे //
लाखी गवाखि सांझ दुआरी / मंद चारि दरपन कर धारी //
सिस सस नैनन काजर डारे / रैनी बेनी माँग सँवारे //
मैं सथ एक अरु मोर सहाई / निज निवासन आन हरुहाईं //
सकल दिसा दरसन दृग अम्बरि / दिवस मुद्रा भै हमहु हराहरि //
करत कहुँ रयनी भोजन, सकल सँजोइ जोए /
लिये दोइ चरन बाहिनी, बाहक बाहिन दोए //
सोमवार, २ ९ जुलाई, २ ० १ ३
तबहि एक बासि देइ उदंते / मंत्र मूल मंतुक लघु मंते //
देवन मंत्रन मंच पधाईं / ते चहि श्रवनन ते तहँ जाईं //
मैं अरु सहचर संग बिचारे / श्रवन मंत्र मंचन पुर चारे //
तेहि कारन दु होरक होरे / कारत कारत थोरहि थोरे //
तहँ ते निकसत भै तानी बेरे / तहँ लग रैनी लिए घन घेरे //
तत पर लै बहि चरे दुनोई / सरनि चरनि चर सर सर होई //
अहा बहिक बहु बहि हहराई / भइ सीतर सरदा के नाईं //
बहुरि चरन अति द्रुत गति धारे/ पंथ गहत करि पार पहारे //
गोचर नयन बिपिन गहन, रूप घन कुंतल काल /
रचना रचित सरिस सरन, बाहन कासित लाल //
मंगलवार, ३ ० जुलाई, २ ० १ ३
केस बिटप बार बन घन घोरे/ जहँ जिउ जंतु जस कीट डोरे //
द्रुम कंटिक कहुँ बट बर षंडे / साख हिरन जिमी कीटक अंडे //
जूँ जून बलयित बहि पद रोले / करत कुलाहल कलबल बोले //
तों तों धुरियत दूर नहाके / लख घर बीथीं धूरै लाखे //
उठइ धूरि धुर ऊपर छाई / चमक चंदु मल मुख धुँधराई //
बही अस जस चंद्रिकाभिसारी / मिलन बिकल जिमि पिया दुआरी //
औचट बिचरत घन बन देसे / निकस आए एक दीर्घ केसे //
पग धारत पथ कारत पारे / आगत सन्मुख सोइ हमारे //
एक तौ बहि बहु गति गहराई / ता पर रयनइ गहनइ छाई //
दरसत मम दृग ते अस हाई / सहरत हहरत चित हरवाई //
फेर लगे बहु डगमगे, कभु दाहिन कभु बाम /
बहनु गति नियंतन लगे, गत कर गिरे धराम //
बुधवार, ३१ जुलाई, २ ० १ ३
धरा साइ भए अस मम गाते / चढ़े कोउ जिमि साख निपाते //
गिरे बाहनु सह ऊपर मोरे / हत कारत मम पंजर तोरे //
दसा दीनतस दिसि अँधियारे/ सूल कुलिस पट अँगवनहारे //
तापर घन बन तम अधिकाई / अस दरस दृग भयउ असहाई //
लसित तनिक हत मोर सहाई / तेहि बहि पाछु पटक धराई //
लाहत आहत पतन अधारा / सूझि न मति का करिअ बिचारा //
सहचर मति अस संकट छाई / मो परिहरु न बनत कहुँ जाई //
परे परे मंझन पथ ठौरे / दोउ नयन को पथिक अगौरे //
पथ निर्जन जामिक घन घोरे / भयजनि जंतु बन रहि न थोरे //
ते डरपत भै चित भयभीते / छत पत हतप्रद भुज बल रीते //
जोगत पथिक पथ निहार, फेर लगे दउ छोर /
दरसन दैं दु चंदु चार, कोउ अहोर न होर //
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